※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 20 मई 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -२-


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, दशमी, सोमवार, वि० स० २०७०

20  May 2013, Monday

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -२-

 

  गत ब्लॉग से आगे...फिर यह विश्वास करना चाहिये की हमारे इष्टदेव भगवान आकाश में हमारे सम्मुख करीब दो फीट की दूरी पर प्रत्यक्ष खड़े है | तत्पश्चात चरणों से लेकर मस्तक तक उस दिव्य मूर्ती का अवलोकन करते हुए यह चौपाई पढनी चाहिये |

नाथ सकल साधन में हीना | किन्हीं कृपा जानी जन दीना ||

हे नाथ ! मैं तो सम्पूर्ण साधनों से हीन हूँ, आपने मुझे दींन जानकार दया की है अर्थात मैंने तो कोई भी ऐसा साधन नहीं किया की जिसके बल पर ध्यान में भी आपके दर्शन हो सकें | किन्तु आपने दीन जानकार ही ध्यान में दर्शन दिये है | इस प्रकार भगवान के आ जाने पर साधक ध्यानावस्था में भगवान से वार्तालाप करता है |

साधक-प्रभो ! आप ध्यानावस्था में भी प्रगट होने में इतना विलम्ब क्यों करते है ? पुकारने के साथ ही आप क्यों नहीं आ जाते ? इतना तरसाते क्यों है ?

भगवान-तरसाने में ही तुम्हारा परम हित है |

साधक-तरसाने में क्या हित है में नहीं समझता | मैं तो आपके पधारने में ही हित समझता हूँ |

भगवान-विलम्ब में आने में विशेष लाभ होता है | विरह्व्याकुलता होती है, उत्कट इच्छा होती है | उस समय आने में विशेष आनन्द होता है | जैसे विशेष क्षुधा लगने पर अन्न अमृत के समान लगता है |

साधक-ठीक है, किन्तु विशेष विलम्ब से आने पर निराश होकर साधक ध्यान छोड़ भी तो सकता है |

भगवान-यदि मुझ पर इतना विश्वाश नहीं है और मेरे आने में विलम्ब होने के कारण जो साधक उकताकर ध्यान छोड़ सकता है, उसको दर्शन देकर ही क्या होगा |

साधक-ठीक है, किन्तु आपके आने से आपमें रूचि तो बढ़ेगी ही और उससे साधन भी तेज होगा, इसलिये आपको पुकारने के साथ ही पधारना उचित है |

भगवान-उचित तो वही है जो मैं समझता हूँ और मैं वही करता हूँ, जो उचित है |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!