※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 23 मई 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -५-


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, त्रयोदशी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-आपकी स्मृति मुझे सदा बनी रहे इसके लिए मैं इच्छा रखता हूँ, किन्तु चंच्चल और उदण्ड मन के आगे मेरी कोशिश चलती नहीं | इसके लिए क्या उपाय करना चाहिये ?

भगवान-जहाँ-जहाँ तुम्हारा मन जाए , वहाँ-वहाँ से उसको लौटाकर प्रेम से समझाकर मुझमे पुन:-पुन: लगाना चाहिये अथवा मुझको सब जगह समझकर जहाँ-जहाँ मन जाए वहाँ मेरा ही चिन्तन करना चाहिये |

साधक-यह बात मैंने  सुनी है, पढ़ी है और मैं समझता भी हूँ | किन्तु उस समय यह युक्ति मुझे याद नहीं रहती इस कारण आपका स्मरण नहीं हो पाता |

भगवान-आसक्ति के कारण यह तुम्हारी बुरी आदत पड़ी है | अत: आसक्ति का नाश और आदत सुधारने के लिए महापुरुषों का संग तथा नामजप अभ्यास करना चाहिये |

साधक-यह तो यत्किंच्चित किया भी जाता है और उससे लाभ भी होता है; किन्तु मेरे दुर्भाग्यसे यह भी तो हर समय नहीं होता |

भगवान-इसमें दुर्भाग्य की कौन बात है ? इसमें तो तुम्हारी ही कोशिश की कमी है |

साधक-प्रभो ! क्या भजन और सत्संग कोशिश से होता है ? सुना है की सत्संग पूर्वपुण्य इक्कठे होने पर ही होता है |

भगवान-मेरा और सत्पुरुषों का आश्रय लेकर भजन की जो कोशिश होती है वह अवश्य सफल होती है | उसमे कुसंग. आसक्ति और सन्च्चित बाधा तो डालते है, किन्तु तीव्र अभ्य्यास से सब बाधाओं का नाश हो जाता है और उतरोतर साधन की उन्नति होकर श्रद्धा और प्रेम की वृद्धि होती है और फिर विघ्न-बाधाये नजदीक भी नहीं आ सकती | प्रारब्ध केवल पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों के अनुसार भोग प्राप्त कराता है, वह नवीन शुभ कर्मों के होने मीन बाधा नहीं डाल सकता | जो बाधा प्राप्त होती है वह साधक की कमजोरी से होती है | पूर्वसन्च्चित पुण्यों के सिवा श्रद्धा और प्रेमपूर्वक कोशिश करनेपर भी मेरी कृपा से सत्संग मिल सकता है |

साधक-प्रभों ! बहुत से लोग सत्संग करने की कोशिश करते है पर जब सत्संग नहीं मिलता तो भाग्य की निन्दा करने लग जाते है ! क्या यह ठीक है ?

भगवान-ठीक है किन्तु उसमे धोखा हो सकता है | साधन में ढीलापन आ जाता है | जितना प्रयत्न करना चाहिये उतना करने पर यदि सत्संग न हो तो ऐसा माना जा सकता है परन्तु इस विषय में प्रारब्ध की निंदा न करके अपने में श्रद्धा और प्रेम की जो कमी है उसकी निंदा करनी चाहिये, क्योकि श्रद्धा और प्रेम में नया प्रारब्ध बनकर भी परम कल्याणकारक सत्संग मिल सकता है |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!