※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 24 मई 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -६-


        || श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-प्रभो ! आप सत्संग की इतनी महिमा क्यों करते है ?

भगवान-बिना सत्संग के न तो भजन, ध्यान, सेवादीका साधन ही होता है और न मुझमे अनन्य प्रेम ही हो सकता है | इसके बिना मेरी प्राप्ति होना कठिन है | इसी से मैं सत्संग की इतनी महिमा कहता हूँ |

साधक-प्रभो ! बतलाइये, सत्संग के लिए क्या उपाय किया जाय ?

भगवान-पहले मैं इसका उपाय बतला चुका हूँ की श्रद्धा और प्रेमपूर्वक सत्संग के लिए कोशिश करने पर मेरी कृपा से सत्संग मिल सकता है |

साधक-अब मैं सत्संग के लिए और भी विशेष कोशिश करूँगा | आपसे भी निष्काम प्रेमभाव से भजन-ध्यान निरन्तर होने के लिए मदद मांगता हूँ |

भगवान-तुम अपनी बुद्धि के अनुसार ठीक मांग रहे हो, किन्तु वह तुम्हारे मन को उतना अच्छा  नहीं लगता जितना की विषयभोग लगते है |   

साधक-हाँ ! बुद्धि से तो मैं चाहता हूँ, पर मन बड़ा ही पाजी है, इससे रूचि कम होने के कारण उसको भजन-ध्यान अच्छा न लगे तो उसके आगे मैं लाचार हूँ | इसलिए ही आपको विशेष मदद करनी चाहिये |

भगवान-मन की भजन-ध्यान की और कम रुचि हो तो भी यही कोशिश करते रहों की वह भजन-ध्यान में लगा रहे | धीरे-धीरे उसमे रुचि होकर भजन ठीक हो सकता है |

साधक-मैं शक्ति के अनुसार कोशिश करता रहा हूँ किन्तु अभी तक सन्तोषजनक काम नहीं बना | इसी से उत्साह भंग-सा होता है | यही विश्वास है की आपकी दया से ही यह काम हो सकता है | अतएव आपको विशेष दया करनी चाहिये |

भगवान-उसाहहीन नहीं होना चाहिये | मेरे ऊपर भार डालने से सब कुछ हो सकता है | यह तो ठीक है, किन्तु मेरी आज्ञा के अनुसार कटिबद्ध होकर चलने की भी तो तुम्हे कोशिश करनी ही चाहिये | ऐसा मत मानो ही हमने सब कोशीश कर ली, अभी कोशिश करने में बहुत कमी है | तुम्हारी शक्ति के अनुसार अभी कोशिश नहीं हुई है | इसलिए खूब तत्परता से कोशिश करनी चाहिये |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!