|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, प्रतिपदा, रविवार,
वि० स० २०७०
गत ब्लॉग
से आगे...साधक-कोशिश तो
खूब करता हूँ, किन्तु मन के आगे मेरी कुछ चलती नहीं |
भगवान-खूब कोशिश करता हूँ यह मानना गलत है | कोशिश थोड़ी
करते हो और उसको मान बहुत लेते हों |
साधक-इसके सुधारने के लिए मैं विशेष कोशिश करूँगा; किन्तु
शरीर में और सांसारिक विषयों में आसक्ति रहने तथा मन चन्चल होने के कारण आपकी दया
बिना पूर्णतया शरण होना बहुत कठिन प्रतीत होता है |
भगवान-कठिन मानते हो इसलिए कठिन प्रतीत हो रहा है | वास्तव
में कठिन है नहीं |
साधक-कैसे न कठिन मानूँ? मुझे तो ऐसा प्रयत्क्ष प्रतीत होता
है |
भगवान-ठीक मालूम हो तो होता रहे, किन्तु तुम्हे हमारी बात
की और ध्यान देना चाहिये |
साधक-आज से आपकी दयापर भरोसा रखकर कोशिश करूँगा जिससे वह
मुझे कठिन भी मालूम न पड़े | किन्तु सुना है की आपके थोड़े-से भी नाम-जप तथा ध्यान
से सब पापों का नाश हो जाता है | शास्त्र और आप भी ऐसा ही कहते है, फिर वृतियाँ
मलिन होने का क्या कारण है ? थोडा-सा भजन-ध्यान तो मेरे द्वारा भी होता ही होगा |
भगवान-भजन-ध्यान से सब पापों का नाश होता है यह सत्य है
किन्तु इसमें कोई विश्वाश करे तब न | तुम्हारा भी तो इसमें पूरा विश्वास नहीं है,
क्योकि तुम मान रहे हों की पापों का नाश नहीं हुआ है | वे अभी वैसे ही पड़े है |
साधक-विश्वास न होने में क्या कारण है ?
भगवान-नीच* और नास्तिकों# का संग,
सन्च्चित पाप और दुर्गुण |
* झूठ, कपट, चोरी,
जारी, हिंसा आदि शास्त्रविपरीत कर्म करने वालों को नीच कहते है |
# ईश्वर को तथा श्रुति, स्मृति आदि शास्त्रको न मानेवाले को
नास्तिक कहते है |
साधक-पाप और दुर्गुण क्या अलग-अलग वस्तु है ?
भगवान-चोरी, जारी, झूठ, हिंसा और दम्भ-पाखंड आदि पाप है तथा
राग, द्वेष, काम, ल्रोध, दर्पऔर अहंकार आदि दुर्गुण है |
साधक-इन सबका नाश कैसे हो?
भगवान-इनके नाश के लिए निष्काम भाव से भजन, ध्यान, सेवा और
सत्संग आदि करना ही सबसे बढकर उपाय है |
साधक-सुना है वैराग्य होने से राग-द्वेषादी दोषों का नाश हो
जाता है और उससे भजन-ध्यान का साधन भी अच्छा होता है |
भगवान-ठीक है ! वैराग्यसे भजन-धयन का संग्रह बढ़ता है |
किन्तु अंत:करण शुद्ध हुए बिना दृढ वैराग्य भी तो नहीं होता | यदि कहो तो शरीर और
संसारिक भोगों में दुःख और दोषबुद्धि करने से भी वैराग्य हो सकता है, सो ठीक है |
पर यह वृति भी उपर्युक्त साधनों से ही होती है | अतएव भजन, ध्यान, सेवा और सत्संग
आदि करने की प्राणपर्यन्त चेष्टा करनी चाहिये |....शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!