※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 28 मई 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१०-


      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, चतुर्थी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-नहीं मानुँ तो क्या करूँ ? कैसे न मानुँ | पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के बिना तो दर्शन हो ही नहीं सकते और उनकी मुझमे बहुत कमी हैं |

भगवान-क्या कमी की पूर्ती नहीं हो सकती ?

साधक-हो सकती है, परन्तु जिस तरह से होती आयी है यदि उसी तरह से होती रही तो इस जन्म में तो इस कमी की पूर्ती होनी सम्भव नहीं |

भगवान-ऐसा सोचकर तुम स्वयं ही अपने मार्ग में क्यों रूकावट डालते है ? क्या सौ बरस का कार्य एक मिनट में नहीं हो सकता ?

साधक-हाँ, आपकी कृपा से सब कुछ हो सकता हैं |

भगवान-फिर यह हिसाब क्यों लगा लिया की इस जन्म में अब सम्भव नहीं |

साधक-यह मेरी मूर्खता है पर अब ऐसी कृपा कीजिये जिससे अपमे शीघ्र ही पूर्ण श्रद्धा  और अनन्य प्रेम हो जाय |

भगवान-क्या मुझमे तुम्हारी पूर्ण श्रद्धा और प्रेम होना मैं नहीं चाहता ? क्या इसमें मैं बाधा डालता हूँ |

साधक-इसमें बाधा डालने की तो बात ही क्या है ? आप तो मदद करते है | किन्तु श्रद्धा और प्रेम की पूर्ती में विलम्ब हो रहा है, इसलिए प्रार्थना की जाती है |

भगवान-ठीक है | किन्तु पूर्ण प्रेम और श्रद्धा की जो कमी है उसकी पूर्ती करने के लिए मेरा आश्रय लेकर खूब प्रयत्न करना चाहिये |

साधक-भगवन् ! मैंने सुना है की रोनेसे भी उसकी पूर्ती होती है | क्या यह ठीक है ?

भगवान-वह रोना दूसरा है |

साधक-दूसरा कौन-सा और कैसा ?

भगवान-वह रोना ह्रदय से होता हैं;जैसे की कोई आर्त दुखी आदमी दुःखनिवृति के लिए सच्चे ह्रदय से रोता है |

साधक-ठीक है | चाहता तो वैसा ही हूँ, किन्तु सब समय वैसा रोना आता नहीं |

भगवान-इससे यह निश्चित होता है की बुद्धि के विचारद्वारा तो तुम रोना चाहते हों, किन्तु तुम्हरा मन नहीं चाहता |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!