|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, चतुर्थी, मंगलवार,
वि० स० २०७०
गत
ब्लॉग से आगे...साधक-नहीं
मानुँ तो क्या करूँ ? कैसे न मानुँ | पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के बिना तो दर्शन हो
ही नहीं सकते और उनकी मुझमे बहुत कमी हैं |
भगवान-क्या कमी की पूर्ती नहीं हो सकती ?
साधक-हो सकती है, परन्तु जिस तरह से होती आयी है यदि उसी
तरह से होती रही तो इस जन्म में तो इस कमी की पूर्ती होनी सम्भव नहीं |
भगवान-ऐसा सोचकर तुम स्वयं ही अपने मार्ग में क्यों रूकावट
डालते है ? क्या सौ बरस का कार्य एक मिनट में नहीं हो सकता ?
साधक-हाँ, आपकी कृपा से सब कुछ हो सकता हैं |
भगवान-फिर यह हिसाब क्यों लगा लिया की इस जन्म में अब सम्भव
नहीं |
साधक-यह मेरी मूर्खता है पर अब ऐसी कृपा कीजिये जिससे अपमे
शीघ्र ही पूर्ण श्रद्धा और अनन्य प्रेम हो
जाय |
भगवान-क्या मुझमे तुम्हारी पूर्ण श्रद्धा और प्रेम होना मैं
नहीं चाहता ? क्या इसमें मैं बाधा डालता हूँ |
साधक-इसमें बाधा डालने की तो बात ही क्या है ? आप तो मदद
करते है | किन्तु श्रद्धा और प्रेम की पूर्ती में विलम्ब हो रहा है, इसलिए
प्रार्थना की जाती है |
भगवान-ठीक है | किन्तु पूर्ण प्रेम और श्रद्धा की जो कमी है
उसकी पूर्ती करने के लिए मेरा आश्रय लेकर खूब प्रयत्न करना चाहिये |
साधक-भगवन् ! मैंने सुना है की रोनेसे भी उसकी पूर्ती होती
है | क्या यह ठीक है ?
भगवान-वह रोना दूसरा है |
साधक-दूसरा कौन-सा और कैसा ?
भगवान-वह रोना ह्रदय से होता हैं;जैसे की कोई आर्त दुखी
आदमी दुःखनिवृति के लिए सच्चे ह्रदय से रोता है |
साधक-ठीक है | चाहता तो वैसा ही हूँ, किन्तु सब समय वैसा
रोना आता नहीं |
भगवान-इससे यह निश्चित होता है की बुद्धि के विचारद्वारा तो
तुम रोना चाहते हों, किन्तु तुम्हरा मन नहीं चाहता |....शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!