※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 1 जून 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१४-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, अष्टमी, शनिवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-आप निर्गुण-निराकार होते हुए दिव्य सगुण-साकाररूप से कैसे प्रगट होते है ?

भगवान-निर्मल आकाश में जो परमाणुरूप में जल रहता है वही जल बूंदों के रूप में आकर बरसता है और फिर वही उससे भी स्थूल बर्फ और ओलेके रूप में भी आ जाता है | वैसे ही मैं सत और असत से परे होने पर भी दिव्य ज्ञान के रूप में शुद्ध सूक्ष्म हुई बुद्धि के द्वारा जानने में आता हूँ | तदन्तर में नित्य विज्ञानानन्द हुआ भी अपनी योगशक्ति से जब दिव्यप्रकाशरूप के रूप में प्रगट होता हूँ तब ज्योतिर्मय रूप से योगियों को ह्रदय मीन दर्शन देता हूँ और फिर दिव्य सगुण साकाररूप मैं प्रगट होकर भक्त को प्रत्यक्ष दीखता हूँ | जैसे सूर्य प्रगट होकर सबके नेत्रों को अपना प्रकाश देकर अपना दर्शन देता है |     

साधक-कोई-कोई कहते है की जल तो जड है, उसमे इस प्रकार का विकार हो सकता है; किन्तु निर्विकार चेतन में यह सम्भव नहीं |

भगवान-मुझ निर्विकार चेतन में यह विकार नहीं है | यह तो मेरी शक्ति का प्रभाव है | में तोअसम्भव को भी सम्भव कर सकता हूँ | मेरे लिए कुछ भी अशक्य नहीं है |

साधक-अच्छा यह बतलाइये की आपके साक्षात् दर्शन होने के लिए सबसे बढ़कर क्या उपाय है |

भगवान-मुझमे अनन्य भक्ति अर्थात अनन्य शरणागति |

साधक-अनन्य भक्ति द्वारा किन-किन लक्षणों से युक्त होने पर आप मिलते है |

भगवान-दैवी सम्पति के लक्षणों से युक्त होने पर (गीता १६ | १ से ३ तक)

साधक-दैवीसम्पति के सब लक्षणों आने पर आप मिलते है या पहले भी?

भगवान-यह कोई खास नियम नहीं है की दैवी सम्पति के सब गुण होने ही चाहिये; किन्तु अनन्य भक्ति अवश्य होनी चाहिये |

साधक-दैवी सम्पति के गुण कम होने पर भी आप केवल अनन्य भक्ति से मिलते है | तो फिर मिलने के बाद दैवी सम्पति के सब लक्षण आ जाते होंगे?

भगवान-दैवी सम्पति के लक्षण ही क्या और भी विशेष गुण आ जाते है |

साधक-वे विशेष गुण कौन से है ?

भगवान-समता आदि (गीता १२| १३ से २० तक) |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!