|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, नवमी, रविवार, वि० स० २०७०
गत
ब्लॉग से आगे...साधक-वे लक्षण
आपकी प्राप्ति होने के पीछे ही आते है या पहले भी ?
भगवान-पहले भी कुछ आ जाते है किन्तु मेरी प्राप्ति होने के
बाद तो आ ही जाते है |
साधक-आपकी प्राप्ति के लिए भक्त का क्या कर्तव्य है ?
भगवान-यह तो बतला ही चुका हूँ की केवल मेरी सब प्रकार से
शरण होना |
साधक-शरण के बाद आप स्वयं क्यों नहीं ले लेते ?
भगवान-किसी को जबरदस्ती शरण में ले लेना मेरा कर्तव्य नहीं
है, शरण होना तो भक्त का कर्तव्य है |
साधक-इस विषय में विवेक-विचार से जो शरण होना चाहता है उसको
आप मदद देते है की नहीं ?
भगवान-जो सरल चित से मदद मांगता है, उसको अवश्य देता हूँ |
साधक-जो आपकी प्राप्ति के लिए सब प्रकार से आपकी शरण चाहता
है उसके साधन में ऋद्धि, सिद्धि, देवता आदि विघ्न डाल सकते है या नहीं ?
भगवान-कोई भी विघ्न नहीं डाल सकते |
साधक-देखने में आता है की आपकी भक्ति करने वाले पुरुषों को
अनेक विघ्नों का सामना करना पढता है और उसके साधन में रूकावटे भी पड जाती है |
भगवान-वे सब प्रकार से मेरी शरण नहीं है |
साधक-आपको प्राप्त करने के बाद अणिमादी सिद्धियाँ भी उसमे आ
जाती है क्या ?
भगवान-भक्त को इनकी आवश्यकता ही नहीं है |
साधक-यदि भक्त इच्छा करे तो भी ये प्राप्त हो शक्ति है या
नहीं ?
भगवान-मेरा भक्त इन सबकी इच्छा करता ही नहीं और करे तो वह
मेरा अनन्य भक्त ही नहीं |
साधक-आपकी प्राप्ति होने के बाद आपके भक्त का क्या अधिकार
होता है ?
भगवान-वह अपना कुछ भी अधिकार नहीं मानता है और न चाहता ही
है |
साधक-उसके न चाहने पर भी आप तो दे सकते है ?
भगवान-हाँ, मुझे आवश्यकता होती है तो दे देता हूँ |....शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!