※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 2 जून 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१५-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, नवमी, रविवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-वे लक्षण आपकी प्राप्ति होने के पीछे ही आते है या पहले भी ?

भगवान-पहले भी कुछ आ जाते है किन्तु मेरी प्राप्ति होने के बाद तो आ ही जाते है |

साधक-आपकी प्राप्ति के लिए भक्त का क्या कर्तव्य है ?

भगवान-यह तो बतला ही चुका हूँ की केवल मेरी सब प्रकार से शरण होना |

साधक-शरण के बाद आप स्वयं क्यों नहीं ले लेते ?

भगवान-किसी को जबरदस्ती शरण में ले लेना मेरा कर्तव्य नहीं है, शरण होना तो भक्त का कर्तव्य है |

साधक-इस विषय में विवेक-विचार से जो शरण होना चाहता है उसको आप मदद देते है की नहीं ?

भगवान-जो सरल चित से मदद मांगता है, उसको अवश्य देता हूँ |

साधक-जो आपकी प्राप्ति के लिए सब प्रकार से आपकी शरण चाहता है उसके साधन में ऋद्धि, सिद्धि, देवता आदि विघ्न डाल सकते है या नहीं ?

भगवान-कोई भी विघ्न नहीं डाल सकते |

साधक-देखने में आता है की आपकी भक्ति करने वाले पुरुषों को अनेक विघ्नों का सामना करना पढता है और उसके साधन में रूकावटे भी पड जाती है |

भगवान-वे सब प्रकार से मेरी शरण नहीं है |

साधक-आपको प्राप्त करने के बाद अणिमादी सिद्धियाँ भी उसमे आ जाती है क्या ?

भगवान-भक्त को इनकी आवश्यकता ही नहीं है |

साधक-यदि भक्त इच्छा करे तो भी ये प्राप्त हो शक्ति है या नहीं ?

भगवान-मेरा भक्त इन सबकी इच्छा करता ही नहीं और करे तो वह मेरा अनन्य भक्त ही नहीं |

साधक-आपकी प्राप्ति होने के बाद आपके भक्त का क्या अधिकार होता है ?

भगवान-वह अपना कुछ भी अधिकार नहीं मानता है और न चाहता ही है |

साधक-उसके न चाहने पर भी आप तो दे सकते है ?

भगवान-हाँ, मुझे आवश्यकता होती है तो दे देता हूँ |....शेष अगले ब्लॉग में .    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!