※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 6 जून 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१९-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, त्रयोदशी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-प्रभों ! अब यह बतलाइये की जब मैं आपका ध्यान करने के लिए एकान्त मैं बैठता हूँ तो निंद्रा, आलस्य सताने लगते है इसके लिए क्या करना चाहिये ?

भगवान-हल्का (लघु) और सात्विक तो भोजन करना चाहिये | शरीर को स्थिर और सीधा रखते हुए एवं नेत्रों की द्रष्टि को नासिका के अग्रभाग पर रखकर पद्दासन या स्वस्तिकादी किसी आसन से सुखपूर्वक बैठना चाहिये तथा दिव्य स्त्रोतों के द्वारा मेरी स्तुति-प्रार्थना करनी चाहिये एवं मेरे नाम, रूप, गुण, लीला और प्रभावादी जो तुमने महापुरुषों से सुने है या शास्त्रों मैं पढ़े है, उनका बारम्बार कीर्तन और मनन करना चाहिये | ऐसा करने से सात्विक भाव होकर बुद्धि में जागृति हो जाती है फिर तमोगुण के कार्य निंद्रा और आलस्य नहीं आ सकते |

साधक-भगवन ! आपने गीता में कहा है की मेरा सर्वदा निरंतर चिन्तन करने से मेरी प्राप्ति सुलभ है, क्योकि मैं किये हुए साधन की रक्षा और कमी की पूर्ती करके बहुत ही शीघ्र संसार-सागर से उद्धार कर देता हूँ | किन्तु आप अपनी प्राप्ति जितनी सुलभ और शीघ्रता से होने वाली बतलाते है वैसी मुझे प्रतीत नहीं होती |

भगवान-मेरा नित्य-निरन्तर चिन्तन नहीं होता, इसीसे मेरी प्राप्ति तुझे कठिन प्रतीत होती है |

साधक-आपका कहना यथार्थ है | आपका निरन्तर चिन्तन करने से अवश्य आपकी प्राप्ति शीघ्र और सुगंमता से हो सकती है | किन्तु निरन्तर आपका चिन्तन होना हो तो कठिन है | उसके लिए क्या करना चाहिये |

भगवान-मेरे गुण, प्रभाव,तत्व और रहस्य को न जानने के कारण ही निरन्तर मेरा चिन्तन करना कठिन प्रतीत होता है | वास्तव में वह कठिन नहीं है |

साधक-आपका गुण, प्रभव, तत्व और रहस्य क्या है ? बतलाइये |

भगवान-अतिशय समता, शांति, दया, प्रेम, क्षमा, माधुर्य, वात्सल्य, गम्भीरता, उदारता, सुहृदता मेरे गुण है | सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्य, तेज, शक्ति, सामर्थ्य और असम्भव को संभव कर देना मेरा प्रभाव है | जैसे परमाणु, भाप, बादल, बूदे और औले आदि सब जल ही है, वैसे ही सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार, व्यक्त, अव्यक्त, जड, चेतन, स्थावर, जंगम, सत, असत आदि जो कुछ भी है तथा जो इससे परे है वह सब मैं ही हूँ | यह मेरा तत्व है | मेरे दर्शन, भाषण, स्पर्श, चिन्तन, कीर्तन, अर्चन, वंदन, स्तवन आदि से पापी भी परम पवित्र हो जाता है, यह विश्वाश करना और सर्वग्य सर्वशक्तिमान सर्वत्र समभाव से स्थित मुझ मनुष्यादी शरीरों में प्रगट होने वाले और अवतार लेने वाले परमात्मा को पहचानना यह रहस्य है |....शेष अगले ब्लॉग में.    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!