|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, अमावस्या, शनिवार,
वि० स० २०७०
गत
ब्लॉग से आगे...साधक-केवल
ह्रदय की सात्विक स्फुरणा को ही भगवतआज्ञा मान ले तो की आपति है ?
भगवान-मान सकते हो | किन्तु वह स्फुरणा शास्त्र या
महापुरुषों के वचन अनुकूल होनी चाहिये | क्योकि साधक को शासक की आवस्यकता नहीं,
नहीं तो अज्ञानवश कहीं राजसी, तामसी स्फुरणा को सात्विक मानने से साधक में
उच्च्नखलता आकर उसका पतन हो सकता है |
साधक-यहाँ शास्त्र से आपका क्या अभिप्राय है |
भगवान-श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराणादी जो आर्ष ग्रन्थ है,
वे सभी शास्त्र है | किन्तु यहाँ पर भी मतभेद प्रतीत होने पर श्रुति को ही बलवान
समझना चाहिये; क्योकि स्मृति, इतिहास, पुराणादी का आधार श्रुति ही है |
साधक-श्रुति, स्मृति आदि सारे शास्त्रों का ज्ञान होना
साधारण मनुष्य के लिए कठिन है, ऐसी अवस्था में उनके लिए क्या आधार है ?
भगवान-उन पुरुषों को शास्त्रों के ज्ञाता महापुरुषों का
आश्रय लेना चाहिये |
साधक-महापुरुष किसे माना जाय ?
भगवान-जिसको तुम अपने ह्रदय में सबसे श्रेष्ठ मानते हो वे
ही तुम्हारे लिए महापुरुष है |
साधक-प्रभो ! मेरी मान्यता में भूल एवं उसके कारण मुझे धोखा
भी तो हो सकता है |
भगवान-उसके लिए कोई चिंता नहीं | मेरे आश्रित जनकी मैं
स्वयं सब प्रकार से रक्षा करता हूँ |
साधक-प्रभों ! मैं महापुरुष की जाँच किस आधार पर करू ? महापुरुष के लक्षण क्या है ?
भगवान-गीता के दुसरे अध्याय में श्लोक ५५ से ६१ तक
स्थितप्रघ के नाम से अथवा छठे अध्याय में श्लोक ७ से ९ तक योगी के नाम से या
अध्याय १२ श्लोक १३ से १९ तक भक्तिमान के नाम से अथवा अध्याय १४ श्लोक २२ से २५ तक
गुणातीत के नाम से बतलाये हुए लक्षण जिस पुरुष में हो वन महापुरुष है |
साधक-ऐसे महापुरुषों का मिलना कठिन है | ऐसी परिस्थिती में
क्या करना चाहिये ?
भगवान-ऐसी अवस्था में सबके लिए समझने में सरल और सुगम
सर्वशास्त्रमयी गीता ही आधार है जो की अर्जुन के प्रति मेरे द्वारा कही गयी है |....शेष
अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!