※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 9 जून 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -२२-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल,प्रतिपदा, रविवार, वि० स० २०७०

 

  गत ब्लॉग से आगे...साधक-प्रधानता से गीता में बतलाये हुए किन-किन श्लोकों को लक्ष्य में रखकर साधक आपना गुण और आचरण बनावे ?

भगवान-इसके लिए गीता में बहुत-से श्लोक है; उनमे से मुख्यता ज्ञान के नाम से बतलाये हुए अध्याय १३ के श्लोक ७ से ११ तक या दैवी सम्पति के नाम से बतलाये हुए अध्याय १६ के श्लोक १ से ३ तक अथवा तप के नाम से बतलाये हुए अध्याय १७ के श्लोक १४ से १७ तक के अनुसार अपना जीवन बनाना चाहिये |

साधक-प्रभो ! अब यह बतलाईये आपने कहा कि मेरे किये हुए विधान में हर समय प्रसन्न रहना चाहिये | इसका क्या अभिप्राय है |

भगवान-सूख-दुख, लाभ-हानि, प्रिय-अप्रिय, आदि कि प्राप्तिरूप मेरे किये हुए विधान को मेरा भेजा हुआ पुरस्कार मानकर सदा हि संतुष्ट रहना |

साधक-इन सबके प्राप्त होने पर सदा प्रसन्नता नहि होती, इसका क्या कारण है ?

भगवान-मेरे प्रत्येक विधान में दया भरी हुइ है, इसके तत्व और रहस्य को लोग नहि जानते |

साधक-स्त्री, पुत्र, धन, मकान आदि जो संसारिक सुखदायक पदार्थ है वे सब मोह और आसक्ति के द्वारा मनुष्य को बाधनेवाले है | इन सबको आप किस लिये  देते है ? और इस विधान में आपकी दया के रहस्य को जानना क्या है ?

भगवान-जैसे कोइ राजा अपने प्रेमी को अपने पास शीघ्र बुलाने के लिये मोटर सवारी भेजता है वैसे हि मै पूर्वकृत पुण्यो के फलस्वरूप स्त्री, पुत्र, धन, मकान आदि संसारिक पदार्थो को दूसरो को सुख पहुचाने के लिए एवं सदाचार, सद्गुण और मुझमे प्रेम बढाकर मेरे पास शीघ्र आने के लिए आदेश देता हूँ | इस प्रकार समझना ही मेरी दया के रहस्य को जानना है |

साधक-स्त्री, पुत्र, धननादी संसारिक पदार्थों के विनाश में आपकी दया का तत्व और रहस्य क्या है ?

भगवान-जैसे पतंगे आदि जन्तु रौशनी को देखकर मोह और आसक्ति के कारण उसमे गिरकर भस्म हो जाते है | और उनकी ऐसी दुर्दशा देखकर दयालु मनुष्य उस रौशनी को भुझा देता है, ऐसा करने में यदपि वे जीव नहीं जानते तो भी उनके ऊपर महान दया ही होती है | इसी प्रकार मनुष्य को भोग और आसक्ति के द्वारा बाधकर नरक में डालने वाले इन पदार्थों का नाश करने में भी मेरी महान दया ही समझनी चाहिये |

साधक-आप मनुष्य को आरोग्यता, बल और बुद्धि आदि किसलिये देते है ?

भगवान-सत्संग, सेवा और निरन्तर भजन-ध्यान के अभ्यास द्वारा मेरे गुण, प्रभाव, तत्व और रहस्य को समझने के लिए |

साधक-व्याधि और संकट आदि की प्राप्ति में आपकी दया का दर्शन कैसे करे ?

भगवान-व्याधि और संकट आदि के द्वारा भोग्द्वारा पूर्वकृत किये हुए पापरूप ऋण से मुक्ति तथा दुःख का अनुभव होने के कारण भविष्य में पाप करने में रूकावट होती है | मृत्यु का भय बना रहने से शरीर में वैराग्य होकर मेरी स्मृति होती है | इसके अतिरिक्त यदि व्याधि को परम तप समझकर सेवन किया जाय तो मेरी प्राप्ति भी हो सकती है | ऐसा समझना मेरी दया का दर्शन करना है |....शेष अगले ब्लॉग में.    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!