|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण कृष्ण, पन्चमी, शनिवार, वि० स० २०७०
संतभाव की प्राप्ति भगवत्कृपा से होती है
गत ब्लॉग से आगे..इसपर यह शंका होती है की जब
परमात्मा की कृपा सभीपर है, तब सभी को परमात्मा की प्राप्ति हो जानी चाहिये |
परन्तु ऐसा क्यों नहीं होता ? इसका उत्तर यह है की यदि परमात्मा की प्राप्ति की
तीव्र चाह हो और भगवत्कृपा में विश्वास हो तो सभी को प्राप्ति हो सकती है | परन्तु
परमात्मा की प्राप्ति चाहते ही कितने मनुष्य है, तथा परमात्मा की कृपा पर विश्वास
ही कितनों को है | जो चाहते है और जिनका विश्वास है उन्हें प्राप्ति होती ही है | यदि यह
कहा जाये की परमात्मा की प्राप्ति तो सभी चाहते है, तो यह ठीक नहीं है; ऐसी चाह
वास्तविक चाह नहीं है | हम देखते है जिसको धन की चाह होती है वह धन के लिए सब कुछ
करने तथा इतर सबका त्याग करने को तैयार हो जाता है, इसी प्रकार से भगवत्प्राप्ति
की तीव्र चाह कितनो को है ? धन तो चाहनेपर भी प्रारब्ध में होता है तभी मिलता है,
प्रारब्ध में नहीं होता तो नहीं मिलता | परन्तु भगवान तो चाहने पर अवश्य मिल जाते
है, क्योकि भगवान धन की भाँती जड नहीं है | शेष अगले ब्लॉग में ...
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!