|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण, तृतीया, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
संत के आचरण और उपदेश
गत ब्लॉग से आगे…
प्रश्न: ऐसे संत महात्माओं के आचरण अनुकरणीय है या उपदेश ?
उत्तर : आचरण और उपदेश दोनों ही अनुकरणीय है | केवल आचरण और उपदेश ही क्यों,
उनके एक-एक गुण को अपने ह्रदय में भलीभाँती धारण करना चाहिये | हाँ, यदि आचरण और
उपदेश में भिन्नता प्रतीत हो तो वहाँ उपदेश को ही प्रधान समझा जाता है | यदपि
महापुरुष के आचरण शास्त्र के अनुकूल हो होते है और शास्त्रानुकूल ही वे उपदेश-आदेश
करते है, परन्तु उन पुरुषों के तत्व और रहस्य को न जानने के कारण जो-जो आचरण
शास्त्र के अनुकूल न प्रतीत हो, उसका अनुकरण नहीं करना चाहिये |
यदपि उन महापुरुषों के लिए कुछ भी कर्तव्य नहीं है तथापि स्वाभाविक ही वे
लोगों पर दया कर लोकहित के लिए शास्त्रानुकूल आचरण करते है | उनके शास्त्रविपरीत
आचरण होने का कोई कारण ही नहीं है; परन्तु शास्त्र के अनुकूल जितने कर्म होने
चाहिये, उनमे स्वभाव की उपरामता के कारण अथवा शरीर का बाह्य ज्ञान न रहने के कारण
या और किसी कारण उनमे कमी प्रतीत हो तो उनको इसके लिए कोई बाध्य भी नहीं कर सकता;
क्योकि वे विधि-निषेधरूप शास्त्र से पार पहुचे हुए है |
उनपर ‘यह ग्रहण करो’ या
‘यह त्याग करों’ इस प्रकार का शासन कोई भी नहीं कर सकता | उनके गुण और आचरण ही
सदाचार है | उनकी वाणी उपदेश-आदेश ही वेद वाणी है | फिर उनके लाइक विधान करने वाला
कौन ? अतएव उनके द्वारा होनेवाले आचरण सर्वथा अनुकरणीय ही है, तथापि जिस आचरण में
संदेह हो, जो शास्त्र के विपरीत प्रतीत होता हो उसके लिए या तो उन्ही से पूछ कर
संदेह मिटा लेना चाहिये अथवा उसको छोड़कर जो शास्त्रानुकूल प्रतीत हो उन्ही के
अनुसार आचरण करना चाहिये | शेष अगले ब्लॉग में ...
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!