|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण कृष्ण, द्वादशी, शनिवार, वि० स० २०७०
संत की विशेषता
गत ब्लॉग से आगे…. उपर्युक्त दयासागर भगवान् की दया के तत्व और रहस्य को यथार्थ
जाननेवाला पुरुष भी दया का समुद्र और सब भूतों का सुहृद बन जाता है, भगवान ने कहा
है ‘सुहृदम सर्वभूतानाम ज्ञात्वा मम शान्तिमृछति |’ (गीता ५|२९) इस कथन क रहस्य यही है की दयामय
भगवान् को सब भूतों का सुहृद समझनेवाला पुरुष उस दयासागर के शरण होकर
निर्भय हो जाता है तथा परम शान्ति और परमानन्द को प्राप्त होकर स्वयं दयामय बन
जाता है | इसलिए भगवान ठीक ही कहते है मुझको सबका सुहृद समझनेवाला शान्ति को
प्राप्त हो जाता है, ऐसे भगवत्प्राप्त पुरुष ही वास्तव में संत-पद के योग्य है |
ऐसे संतों को कोई-कोई तो विनोद में भगवान से भी बढ़कर बता दिया करते है | तुलसीदास
जी महाराज कहते है
मोरे मन प्रभु अस बिस्वासा | राम ते अधिक राम कर दासा |
राम सिन्धु घन सज्जन धीरा | चन्दन तरु हरि संत समीरा ||
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!