※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 5 अगस्त 2013

संत-महिमा-११-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण कृष्ण, चतुर्दशी, सोमवार, वि० स० २०७०

संत की दया


गत ब्लॉग से आगे…. उन महात्माओं में कठोरता, वैर और द्वेष का तो नाम ही नहीं रहता | वे इतने दयालु होते है की दुसरे के दुःख को देख कर उनका ह्रदय पिघल जाता है | वे दुसरे के हित को ही अपना हित समझते है | उन पुरुषों में विसुद्ध दया होती है | जो दया, कायरता, ममता, लज्जा, स्वार्थ और भय आदि के कारण की जाति है, वह शुद्ध नहीं है | जैसे भगवान की अहेतुकी दया समस्त जीवों पर है इसी प्रकार महापुरुषों की अहेतु दया सब पर होती है | उनकी कोई कितनी ही बुराई क्यों न करे, बदला लेने की इच्छा तो उनके ह्रदय में होती ही नहीं | कही बदला लेने की-सी क्रिया देखि जाती है, तो वह भी उसके दुर्गुणों को हटाकर उसे विसुद्ध करने के लिए ही होती है | इस क्रिया में उनकी दया छिपी रहती है | जैसे माता-पिता गुरुजन, बच्चे के सुधार के लिए स्नेहपूर्ण ह्रदय से उसे दण्ड देते है इसी प्रकार संतों में भी कभी-कभी क्रिया होती है, परन्तु इसमें भी परम हित भरा रहता है | वे संत करुणा के भण्डार होते है | जो कोई उनके समीप जाता है, वह मानो दया के सागर में गोते लगाता है | उन पुरुष के दर्शन, भाषण, स्पर्श और चिन्तन में भी मनुष्य उनके दयाभाव को देखकर मुग्ध हो जाता है |

वे जिस मार्ग पर निकल पडते है, मेघ की ज्यो दया की वर्षा करते हुए ही निकलते है | मेघ सब समय और सब जगह नहीं बरसता, परन्तु सन्त तो सदा सर्वत्र बरसते ही रहते है | शेष अगले ब्लॉग में ...     

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!