※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 7 अगस्त 2013

संत-महिमा-१३-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, प्रतिपदा, बुधवार, वि० स० २०७०

संत की दया

 
गत ब्लॉग से आगे….प्रहलाद, अम्बरीष आदि के इतिहास इससमे प्रमाण है | अतएव विनोद में भक्त को भगवान् से बढ़कर बतलाना भी युक्तियुक्त ही है | संतजन सुरसरि और सुरतरु से भी विशेष उपकारी है | गंगा और कल्पवृक्ष उनके शरण होने पर क्रमश: पवित्र करते है और मनोरथ पूर्ण करते है | परन्तु संत तो इच्छा करने वाले और न करनेवाले सभी के घर स्वयं जाकर उनके इस लोक और परलोक के कल्याण की चेष्टा करते है | इसपर यदि यह कहा जाय की संत जब सबका हित चाहते है तो सबका हित हो क्यों नहीं जाता ? तो इसका उतर यह है की सामान्यभाव से तो संत से जिन लोगों की भेट हो जाती है, उन सभी का हित होता है | परन्तु विशेष लाभ तो श्रद्धा और प्रेम होने पर ही होता है | यदि यह कहा जाये की जबरदस्ती सबका हित संत क्यों नहीं कर देते ! तो इसका उतर यह है की जबरदस्ती कोई किसी का परम हित नहीं कर सकता | पतंग दीपक में जलकर  मरते है | दयालु पुरुष उन पर दया करके उन्हें बचाने के लिए दीपक या लालटेन को बुझाकर उनका परम हित करना चाहते है, परन्तु वे दीपक जहाँ दुसरे दीपक जलते रहते है, वहाँ जाकर मरते है | इस प्रकार जिन लोगों को कल्याण की स्वयं इच्छा नहीं होती उनका कल्याण करना बहुत ही कठिन है | शेष अगले ब्लॉग में ...   

 
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!