|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
प्रतिपदाश्राद्ध, शुक्रवार, वि० स० २०७०
वैराग्य-प्राप्ति
के उपाय
गत
ब्लॉग से आगे.......अब यहाँ इसका कुछ खुलासा कर दिया जाता है:-परिणामदुखता-जो
सुख आरम्भ में सुखरूप प्रतीत होनेपर भी परिणाम में महान में महान दुखरूप हो, वह
सुख परिणामदुखता कहलाता है | जैसे रोगी के लिए आरम्भ में जीभ को स्वाद लगनेवाला
कुपथ्य | वैधके मना करने पर भी इंद्रियासक्त रोगी आपात-सुखकर पदार्थ को स्वार्थ
खाकर अन्तमें दुःख उठाता, रोता चिल्लाता है, इसी प्रकार विषयसुख आरम्भ में रमणीय
और सुखरूप प्रतीत होनेपर भी परिणाम में महान दुःखकर है |
भगवान्
कहते है:-
विषयेन्द्रिय संयोगाधतद्रगेअमृतोप्ममं |
परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम ||
‘जो
सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है वह यदपि भोगकाल में अमृत के सदर्श
भासता है, परन्तु परिणाम में वह (बल, वीर्य, बुद्धि, धन उत्साह और परलोकका नाशक
होने से) विष के सदर्श है, इसलिए वह सुख राजस कहा गया है |’ (गीता १८|३८)
दादकि खाज खुजलाते समय बहुत हि सुखद मालूम होता है | परन्तु
परिणाममें जलन होने पर वही महान दुखद हो जाती है | यही
विषय-सुखोंका परिणाम
है | इस लोक और परलोक के सभी विषय-सुखों का परिणामदुखता को लिये हुए है | बड़े
पुण्यसंचय से लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है परन्तु ‘ते तं स्वर्गलोकं विशाल क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |’ वे उस विशाल स्वर्गलोक
को भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर पुन: मृत्युलोक को प्राप्त होते है | इसलिये गोसाईजी
महाराज ने कहा है :-
एही
तन कर फल विषय न भाई |
स्वर्गउ
स्वल्प अंत दुखदाई || शेष अगले
ब्लॉग में ......
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!