※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

वैराग्य -१०-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, प्रतिपदाश्राद्ध, शुक्रवार, वि० स० २०७०

वैराग्य-प्राप्ति के उपाय


गत ब्लॉग से आगे.......अब यहाँ इसका कुछ खुलासा कर दिया जाता है:-परिणामदुखता-जो सुख आरम्भ में सुखरूप प्रतीत होनेपर भी परिणाम में महान में महान दुखरूप हो, वह सुख परिणामदुखता कहलाता है | जैसे रोगी के लिए आरम्भ में जीभ को स्वाद लगनेवाला कुपथ्य | वैधके मना करने पर भी इंद्रियासक्त रोगी आपात-सुखकर पदार्थ को स्वार्थ खाकर अन्तमें दुःख उठाता, रोता चिल्लाता है, इसी प्रकार विषयसुख आरम्भ में रमणीय और सुखरूप प्रतीत होनेपर भी परिणाम में महान दुःखकर है |

भगवान् कहते है:-

विषयेन्द्रिय संयोगाधतद्रगेअमृतोप्ममं |

परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम ||

‘जो सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है वह यदपि भोगकाल में अमृत के सदर्श भासता है, परन्तु परिणाम में वह (बल, वीर्य, बुद्धि, धन उत्साह और परलोकका नाशक होने से) विष के सदर्श है, इसलिए वह सुख राजस कहा गया है |’ (गीता १८|३८)     

दादकि खाज खुजलाते समय बहुत हि सुखद मालूम होता है | परन्तु परिणाममें जलन होने पर वही महान दुखद हो जाती है | यही विषय-सुखोंका परिणाम है | इस लोक और परलोक के सभी विषय-सुखों का परिणामदुखता को लिये हुए है | बड़े पुण्यसंचय से लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है परन्तु ‘ते तं स्वर्गलोकं विशाल क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |’ वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर पुन: मृत्युलोक को प्राप्त होते है | इसलिये गोसाईजी महाराज ने कहा है :-

एही तन कर फल विषय न भाई |

स्वर्गउ  स्वल्प अंत दुखदाई || शेष अगले ब्लॉग में ......       

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!