※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 21 सितंबर 2013

वैराग्य -११-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, द्वितिया श्राद्ध, शनिवार, वि० स० २०७०

वैराग्य-प्राप्ति के उपाय



गत ब्लॉग से आगे.......तापदुखता-पुत्र, स्त्री, स्वामी, धन, मकान आदि सभी पदार्थ हर समय ताप देते-जलाते रहते है | कोई विषय ऐसा नहीं है जो विचार करने पर जलानेवाला प्रतीत न हो | इसके सिवा जब मनुष्य अपने से दूसरों को किसी भी विषय में अधिक बढ़ा हुआ देखता है तब अपने अल्प सुख के कारण उसके ह्रदय में बड़ी जलन होती है | विषयों की प्राप्ति, उनके सरक्षण और नाश में भी सदा जलन बनी रहती है | कहा है-

अर्थानामर्जने दुखं तथैव परिपालने |

नाशे दुखं व्यये दुखं धिगार्थन क्लेशकारिण: ||

धन कमाने के कई तरह के संताप, उपार्जन हो जाने पर उसकी रक्षा में सन्ताप, कहीं किसी में डूब न जाये, इस चिन्तालय में सदा ही जलना पडता है, नाश हो जाए तो जलन, खर्च हो जाय तो जलन, छोडकर मरने में जलन, मतलब यह की आदि से अन्ततक केवल संताप ही रहता है | इसलिए इसको धिक्कार दिया गया | यही हाल पुत्र, मान-बड़ाई आदिका है | सभी में प्राप्तिकी इच्छा को लेकर वियोगतक संताप बना रहता है | ऐसा कोई विषयासक्त नहीं जो सन्ताप देने वाला न हो | शेष अगले ब्लॉग में ......       

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!