|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण, तृतीया
श्राद्ध, रविवार, वि० स० २०७०
वैराग्य-प्राप्ति
के उपाय
गत
ब्लॉग से आगे.......संस्कारदुखता- आज स्त्री-स्वामी, पुत्र-परिवार,
धन-मानादी जो विषय प्राप्त है उनके संस्कार ह्रदय में अंकित हो चुके है, इसलिए
उनके समाप्त होनेपर संस्कारों के कारण उन वस्तुओंका अभाव महान दुखदायी होता है |
में कैसा था, मेरा पुत्र सुन्दर, सुडौल और आज्ञाकारी था, मेरी स्त्री कितनी सुशीला
थी, मेरे पितासे मुझे कितना सुख मिलता था, मेरी बड़ाई जगत भर में छा रही थी, मेरे
पास लाखों रूपये थे परन्तु आज में क्या से क्या हो गया | मैं सब तरह से दींन-हीन
हो गया, यदपि उसी के समान जगत में लाखों-करोड़ों मनुष्य आरम्भ से ही इन विषयों से
रहित है परन्तु वे ऐसे दुखी नहीं है | जिसके विषय-भोगों की बाहुल्यता के समय सुखों
के संस्कार होते है उसे ही उनके अभाव की प्रतीति होती है | अभाव की प्रतीति में
दुःख भरा पडा है | यहीं संस्कार-दुखता है
|
इसके सिवा यह बात भी सर्वथा ध्यान में रखनी
चाहिये की संसार के सभी विषय-सुख सभी अवस्था में दुःख से मिश्रित है | शेष अगले ब्लॉग में ......
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!