|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण, पंचमी
श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७०
वैराग्य-प्राप्ति
के उपाय
गत
ब्लॉग से आगे.......उपर्युक्त भयसे और विचारसे होने वाले दोनों प्रकार के
वैराग्यों को प्राप्त करने के यही उपाय है, यह उपाय पूर्वापेक्षा उत्तम श्रेणी के
वैराग्य-सम्पादन में भी अवश्य ही सहायक होते है | परन्तु अगले दोनों वैराग्यों की
प्राप्ति में निम्नलिखित साधन विशेष सहायक होते है |
परमात्मा के नाम-जप और उनके स्वरुप का निरन्तर
स्मरण करते रहने से ह्रदय का मल ज्यो-ज्यो दूर होता है, त्यों-त्यों उसमे
उज्ज्वलता आती है | ऐसे उज्जवल और शुद्ध अन्त:करण में वैराग्य की लहरें उठती है,
जिनसे विषयानुराग मनसे स्वयमेव ही हट जाता है | इस अवस्था में विशेष विचार की
आवश्यकता नहीं रहती | जैसे मैल दर्पण को रूईसे घिसने पर ज्यों-ज्यों उसका मैल दूर
होता , त्यों-ही-त्यों वह चमकने लगता है और उसमे मुख का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखलाई
पडता है, इसी प्रकार परमात्मा के भजन-ध्यानरुपी रूई की चालू रगड़ से अंत:करणरुपी
दर्पण का मल दूर होने पर वह चमकने लगता है और उसमे सुखस्वरूप आत्मा का प्रतिबिम्ब
दीखने लगता है | ऐसी स्थिती में जरा-सा भी बाकी रहा हुआ विषय-मलका दाग साधक के
हृदय में शूल सा खटकता है | अतएव वह उत्तरोतर अधिक उत्साह के साथ उस दाग को मिटाने
के लिए भजन-ध्यान में तत्पर होकर अन्तमें उसे सर्वथा मिटाकर ही छोड़ता है |
ज्यो-ज्यों भजन-ध्यान से अंत:करणरुपी दर्पण की सफाई होती है, त्यों-त्यों साधक की
आशा और उसका उत्साह बढ़ता रहता है, भजन-ध्यानरुपी साधन-तत्व को न समझने वाले मनुष्य
को ही भाररूप प्रतीत होता है | जिसको इसके तत्व का ज्ञान होने लगता है, वह तो
उत्तरोतर आनन्द की उपलब्धि करता हुआ पूर्णानन्दकी प्राप्ति के लिए भजन-ध्यान बढाता
ही रहता है | उसकी दृष्टी में विषयों में दीखने वाले विषय-सुख की कोई सत्ता ही
नहीं रह जाती | इससे उसे दृढ वैराग्य की बहुत शीघ्र प्राप्ति हो जाती है | शेष अगले ब्लॉग में ......
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!