※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

वैराग्य -१४-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, पंचमी श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७०

वैराग्य-प्राप्ति के उपाय



गत ब्लॉग से आगे.......उपर्युक्त भयसे और विचारसे होने वाले दोनों प्रकार के वैराग्यों को प्राप्त करने के यही उपाय है, यह उपाय पूर्वापेक्षा उत्तम श्रेणी के वैराग्य-सम्पादन में भी अवश्य ही सहायक होते है | परन्तु अगले दोनों वैराग्यों की प्राप्ति में निम्नलिखित साधन विशेष सहायक होते है |

परमात्मा के नाम-जप और उनके स्वरुप का निरन्तर स्मरण करते रहने से ह्रदय का मल ज्यो-ज्यो दूर होता है, त्यों-त्यों उसमे उज्ज्वलता आती है | ऐसे उज्जवल और शुद्ध अन्त:करण में वैराग्य की लहरें उठती है, जिनसे विषयानुराग मनसे स्वयमेव ही हट जाता है | इस अवस्था में विशेष विचार की आवश्यकता नहीं रहती | जैसे मैल दर्पण को रूईसे घिसने पर ज्यों-ज्यों उसका मैल दूर होता , त्यों-ही-त्यों वह चमकने लगता है और उसमे मुख का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखलाई पडता है, इसी प्रकार परमात्मा के भजन-ध्यानरुपी रूई की चालू रगड़ से अंत:करणरुपी दर्पण का मल दूर होने पर वह चमकने लगता है और उसमे सुखस्वरूप आत्मा का प्रतिबिम्ब दीखने लगता है | ऐसी स्थिती में जरा-सा भी बाकी रहा हुआ विषय-मलका दाग साधक के हृदय में शूल सा खटकता है | अतएव वह उत्तरोतर अधिक उत्साह के साथ उस दाग को मिटाने के लिए भजन-ध्यान में तत्पर होकर अन्तमें उसे सर्वथा मिटाकर ही छोड़ता है | ज्यो-ज्यों भजन-ध्यान से अंत:करणरुपी दर्पण की सफाई होती है, त्यों-त्यों साधक की आशा और उसका उत्साह बढ़ता रहता है, भजन-ध्यानरुपी साधन-तत्व को न समझने वाले मनुष्य को ही भाररूप प्रतीत होता है | जिसको इसके तत्व का ज्ञान होने लगता है, वह तो उत्तरोतर आनन्द की उपलब्धि करता हुआ पूर्णानन्दकी प्राप्ति के लिए भजन-ध्यान बढाता ही रहता है | उसकी दृष्टी में विषयों में दीखने वाले विषय-सुख की कोई सत्ता ही नहीं रह जाती | इससे उसे दृढ वैराग्य की बहुत शीघ्र प्राप्ति हो जाती है | शेष अगले ब्लॉग में ......       

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!