|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण अमावस्या,गुरुवार, वि०स० २०७०
*धर्मके
नामपर पाप*
गत
ब्लॉग से आगे.......जो भोले-भाले मनुष्य अच्छे भाव
से भी स्त्रियों को इकठ्ठा करके गाना, बजाना, नाचना आदि करते हैं, वे भी भूल करते
हैं | प्रारम्भ में शुद्ध भाव रहनेपर भी आगे चलकर उनमें भी दोष आ जानेकी बहुत
सम्भावना रहती है | ऐसी स्थिति में उन्हें स्त्रियों के संग से सर्वथा बचना चाहिए
| जो लोग अपनी इस अनधिकार चेष्टा के समर्थन में यह दलील पेश करते हैं कि
ब्याह-शादी के अवसरों में भी तो स्त्रियाँ एकत्र होकर गाना बजाना, नाचना आदि करती
हैं; बल्कि गालियों के रूपमें गंदे गीत भी गाती हैं, दामाद के साथ अश्लील बातें
करती हैं; फिर यदि वे भगवद्भजन-कीर्तन आदि के लिए एकत्र हों तो इसमें क्या आपत्ति
है ? इसका उत्तर यह है कि ब्याह-शादी के अवसरों पर भी स्त्रियों का एकत्र होकर
गाना, बजाना, नाचना आदि प्रमाद ही है | उसे मैं ठीक नहीं समझता | गंदे गीत गाना और
किसी भी पुरुष के साथ अश्लील बातें करना तो बड़ा भारी प्रमाद और पाप है तथा
व्यभिचारमें सहायक होने के नाते एक प्रकार का व्यभिचार ही है | ऐसी स्थिति में
उसका उदाहरण देकर स्त्रियों के एक स्थान पर एकत्र होकर गाने, बजाने, नाचने आदि का
समर्थन करना कदापि युक्तियुक्त नहीं कहा जा सकता है | फिर जो लोग महंत बनकर स्त्रियों से पैर पुजाते
हैं, उन्हें अपने शरीर का धोवन, पादोदक अथवा उच्छिष्ट देते हैं तथा अपना फोटो पूजा
के लिए देते हैं, अथवा स्वयं कृष्ण बनकर स्त्रियों के साथ रासलीला करते हैं, वे तो
महान पाप करते हैं और अपना तथा अपनी पूजा करनेवालों का महान अहित करते हैं | इसलिए
उनका चरणोदक आदि लेना, उनके शरीर की अथवा फोटो की पूजा करना अत्यन्त निषिद्ध है | और
स्त्रियों के लिए तो अपने पति को छोड़कर किसी भी दूसरे
पुरुष के शरीर का स्पर्श करना, चरणोदक लेना सर्वथा वर्जित है | सतीशिरोमणि
जगज्जननी जानकी ने तो हनुमान-जैसे आदर्श यति तथा परम भक्त के द्वारा भी लंका से
श्रीराम के पास ले जाया जाना इसीलिए अस्वीकार कर दिया कि वे जान-बूझकर किसी भी पर
पुरुषका स्पर्श नहीं कर सकतीं, चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो | यह कथा
वाल्मीकिरामायण के सुन्दरकाण्ड में आती है | ऐसी दशा में स्त्रियों का अपने पति को
छोड़कर किसी भी दूसरे पुरुष का स्पर्श करना तथा चरणोदक अथवा उच्छिष्ट लेना कदापि
न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता | इसका जहाँतक हो सके खूब विरोध करना चाहिए | बहुत जगह
तो ऐसा होता है कि स्त्रियाँ अपने सम्बन्धियों के यहाँ—मामा, बहिन आदि के यहाँ—अथवा
ससुराल से नैहर और नैहर से ससुराल जाने तथा देवालय, तीर्थ आदि में बहाना करके इस
प्रकार के गुटों में शामिल हो जाती हैं और इसका परिणाम प्रायः महान भयंकर होता है
|.....शेष अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!