|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद शुक्ल प्रथमा, शुक्रवार, वि०स० २०७०
*धर्मके
नामपर पाप*
गत ब्लॉग
से आगे.......इस प्रकार धर्म की आड़में जब पाप
होने लगता है, आस्तिकता के नाम पर नास्तिकता का ताण्डवनृत्य होने लगता है, तब
स्वयं भगवान् अथवा उनकी विभूतियाँ धर्म तथा आस्तिकता को शुद्ध रूपमें प्रकट करने
के लिए धर्म एवं आस्तिकता का विरोध तथा अधर्म एवं नास्तिकता का प्रचार करने लगते
हैं | आज भी जब कथा-कीर्तन आदि के नामपर जगह-जगह व्यभिचार को आश्रय दिया जाने लगा
है, ऐसे समय में यदि कोई शुद्ध नीयत से कथा-कीर्तन का विरोध करे तो वह अनुचित नहीं
कहा जायगा; क्योंकि वे लोग वास्तव में कथा-कीर्तन का विरोध नहीं करते, बल्कि उसके
नामपर होनेवाले पापाचरण का विरोध करते हैं |
ऐसी स्थिति में देश
और समाज का हित चाहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह धर्म के नाम पर
होनेवाले ऐसे पापों को रोकनेकी पूरी चेष्टा करे | किसी भी बहाने अपने घर की
स्त्रियों को दूसरों के यहाँ न जाने दे, तीर्थों और देवालयों में तथा अपने
विश्वासपात्र के घर भी अकेले न जाने दे | जो स्त्रियाँ मूर्खतावश ऐसा करती हैं,
उन्हें सब प्रकार की नीति से समझाने की चेष्टा करे | गड्ढे में गिरते हुए अपने स्वजन-सम्बन्धी
को बलपूर्वक बचाना भी कर्तव्य होता है | जिस किसी प्रकार से भी हो, उनकी बुद्धि
में इस बात को जचा देने की आवश्यकता है कि स्त्रियों का स्वतन्त्रतापूर्वक एकत्र
होना उनके लिए खतरे से खाली नहीं है, पति को छोड़कर किसी भी पुरुष का चरणोदक अथवा
उच्छिष्ट लेना पाप है, चाहे वह साधू ही क्यों न हो | देश,
धर्म और समाज के नेताओं, सुधारकों, महात्माओं तथा देश और समाज की सेवा करनेवाले
उत्साही नवयुवकों से मेरी अपील है कि जहाँ कहीं वे इस प्रकार का अत्याचार देखे,
वहीँ वे इसका जोरके साथ विरोध करें | जिस किसी प्रकार से हो, नारीजाति की पवित्रता की रक्षा करना, समाज को पाप
से बचाना हमलोगों का प्रधान कर्तव्य है | सतीत्व ही नारी का भूषण है |
याद रखना चाहिए कि सती स्त्रियाँ ही देश और धर्म
की रक्षा करनेवाली वीर एवं धार्मिक संतान उत्पन्न कर सकती हैं |
स्त्रियोंका पुरुषों के साथ स्वतंत्ररूप
से घूमना, सैर-सपाटे के लिए बाहर जाना, नाटक-सिनेमा आदि में जाना, पार्टियों में
सम्मिलित होना, नाश, ताश, चौपड़, शतरंग आदि खेलना, क्लबों में जाना, युवक अध्यापकों
द्वारा युवती कन्याओं का पढ़ाया जाना, युवक-युवतियोंका एक साथ पढ़ना आदि तो और भी खतरनाक
हैं | पाश्चात्त्यों की देखा-देखी हमारे शिक्षित समाज में भी धीरे-धीरे
स्त्री-पुरुषोंका संसर्ग बढ़ता जाता है, जो देश के लिए कभी हितकर नहीं कहा जा सकता
| पाश्चात्त्य देशों में स्त्रियों को सब प्रकार की स्वतन्त्रता देनेका जो भयंकर
दुष्परिणाम दृष्टिगोचर हो रहा है, उससे हमें शिक्षा लेनी चाहिए और हम भी उसका कटु
अनुभव करें इससे पहले ही हमें चेत जाने की आवश्यकता है | हमलोगों को चाहिए कि
सभी बातों में पाश्चात्त्यों का अनुकरण न कर केवल उनके गुणों को ग्रहण करें | इसी
में हमारा कल्याण है | ऐसा न कर यदि हम अंधाधुंध पाश्चात्त्यों का सभी बातों
में अनुकरण करने में लगे रहे तो भगवान् जानें हमलोगों की क्या दुर्दशा होगी, हमलोग
पतन के किस गर्त में गिरेंगे | इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हमलोग समय रहते चेत
जायँ और अपनी प्राचीन संस्कृति के महत्त्व को समझकर उसे पुनर्जीवित करने की चेष्टा
करें |
—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
