※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 23 नवंबर 2013

दहेज से हानि



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण षष्टी, शुक्रवार, वि०स० २०७०
** दहेज से हानि **
इस समय कन्याओं के विवाह का प्रश्न भी बहुत ही जटिल हो  रहा है; क्योंकि हमारे देश में दहेज की प्रथा ने भयानक रूप धारण कर लिया है | लड़के के अभिभावक कन्यावालों से अधिक-से-अधिक धन-सम्पत्ति लेना चाहते हैं और कन्या-वालों को कहीं-कहीं ऋण और सहायता लेकर भी विवाह करना पड़ता है, नहीं तो उस कन्या का विवाह होना कठिन हो जाता है | कोई-कोई लड़की तो अपने माता-पिता की गरीबी को देखकर उनके दुःख से दुखी होकर आत्महत्या तक कर लेती है ! किसी लड़की के गरीब माता-पिता उस लड़की के विवाह-योग्य धन न होने के कारण ऐसी भावना करने लगते हैं कि लड़की बीमार होकर किसी प्रकार मर जाय तो ठीक है और यदि लड़की बीमार हो जाती है तो उसका उचित औषधोपचार भी नहीं करते | इन सबमें प्रधान हेतु दहेज़ की कुप्रथा है |
          इन उपर्युक्त हत्याओं का पाप अनुचित दहेज लेनेवालों को लगता है | जो बिलकुल दहेज़ नहीं लेता, वह तो अपना जीवन सफल बनाता ही है; दहेज़ देनेवाले लड़की लड़की का अभिभावक जितना देना चाहे, उससे कम लेनेवाला भी धन्यवाद का पात्र है | अपने द्वारा प्रतीकार करनेपर भी दहेज़ देनेवाला प्रसन्नतापूर्वक आग्रह करके जो कुछ देता है, (अवश्य ही यह पता लगा लेना चाहिये कि इसके देने में इसको ऋणग्रस्त होना या घर-जमीन बेचने तो नहीं पड़े हैं |) उसी को लेकर संतुष्ट हो जाता है, उसे भी हम उतना दोषका भागी नहीं मानते; किन्तु जो विवाह के लिए मोल-तौल करता और अधिक-से-अधिक लेना चाहता है तथा अधिक देनेवाले की लड़की से ही विवाह करता है और लड़की वाला अपनी सामर्थ्य के अनुसार लड़केवाले को देकर संतोष कराना चाहता है, इसपर भी लड़केवाले को संतोष नहीं होता, ऐसे पुरुष ही उपर्युक्त पाप के भागी होते हैं |
         अतएव सभी भाइयों से हमारी प्रार्थना है कि वर्तमान में जो दहेज़प्रथा उत्तरोत्तर बढ़ रही है, इस बढ़ती हुई बाढ़ को जिस किसी प्रकार से यथाशक्ति रोकने की चेष्टा करें, नहीं तो समाज का पतन और विनाश होनेकी सम्भावना है | विशेषकर हमारी प्रार्थना दहेज़ लेनेवालों से है कि वे दहेज़ लेने का यथाशक्ति त्याग करें | जितना वे त्याग करें, उतने ही वे धन्यवाद के पात्र हैं | दहेज़ का दिखावा भी दहेज़-प्रथा के चालू रहने तथा बढ़ने में कारण है, उसे भी तुरंत बंद कर देना चाहिए |
          यह सोचना चाहिए कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है | इस भगवत्प्राप्ति के साधन में परस्पर सहायता करना सबका धर्म है | जो ऐसा न करके किसी के हृदय में महान चिंता उत्पन्न कर देते हैं, वे वास्तव में बड़ा अनर्थ कर देते हैं | जबरदस्ती दहेज़ लेनेवाले लोग कन्या के पिता के हृदय में चिंता उत्पन्न करके उसे परमार्थ से भी गिरा देते हैं | इसलिए दहेज़ की प्रथा बंद होनी चाहिए |
श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, ‘साधन-कल्पतरु’ पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!