※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

.....गीताजयंती विशेष लेख ..... गीता -१-----एकादशी से एकादशी तक ......


 

।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष कृष्ण, एकादशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 
.....गीताजयंती विशेष लेख ..... एकादशी से एकादशी तक ......

गीता -१-

१. ब्रह्मचर्याश्रम, गीता का प्रचार, सत्संग का प्रचार यह काम बहुत अच्छा है । लोगों को कहाँ भी जाता है । देशी कपडा, जूता, ब्रह्मचर्याश्रम, गीता जी का प्रचार  - इनके करने में कितनी कठिनाई पड़ी है । अब आपको कितनी सुगमता है । आगे कलियुग में समय बहुत ख़राब आ रहा है ।

२. गीता के अधयन्न से इश्वर में पूर्ण श्रद्धा हो सकती है ।

३. श्रीगीता जी का अर्थ बहुत सरल है, उसका भी सार-“त्याग से भगवत्प्राप्ति है ।”

४. हर समय भजन-ध्यान, श्री गीताजी का अभ्यास करने वाले से भगवान तथा महात्मा बहुत प्रसन्न रहते है ।

५. मेरे को गीताजी बहुत प्यारी हैं, क्योकि मेरे प्यारे प्रेमी की बनायीं हुई हैं । इसका नित्य मनन करना चाहिए ।

६. जिस प्रकार दलाल से साथ सैम्पुलकी गठरी धोने वाले मजदूर की भी मालिक से मुलाकात हो जाती हैं, उसी प्रकार जो श्रीगीताजी के प्रचार का थोडा भी काम निष्काम भाव से करता है, वह परमात्म-प्राप्ति का पात्र बन जाता है ।

७. सबसे ऊँचा काम श्रीगीताजी का प्रचार करना और श्रीपरमात्मा का ध्यान का है । इनमे भी श्री गीता जी का प्रचार एक नुम्बर का है ।

८. जो बात सुनकर श्रीगीताजीका प्रचार करने की शक्ति और उत्साह बढे और ध्यान की स्थितीकी वृद्धि हो, ऐसी प्रभाव की बाते सारे काम छोड़कर सुननी चाहिए ।

९. श्रीगीता जी का प्रचार सम्पूर्ण जातियों में करन चाहिए ।

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, परमार्थ-सूत्र-संग्रह पुस्तक से, पुस्तक कोड ५४३, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!