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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, द्वादशी, शनिवार,
वि० स० २०७०
.....गीताजयंती विशेष
लेख ..... एकादशी से एकादशी तक ......
गीता -२-
१०. श्री गीताजी का काम सत्संग छोड़कर करना भी उत्तम है ।
१२. श्री गीताजी की महिमा, श्रीगीताजी के प्रचार के बराबर
लाभदायक दूसरा काम नहीं है, मेरे को जो कुछ लाभ देखने में आता है, वह श्री गीताजी
का प्रभाव है ।
१२. गौ, गीता, गंगा, गायत्री और
गोविन्द का नाम । इन पाँचों की शरण से पूरन होवे काम ।। एक-एक की शरण से भी
बेडा पार है । इनमे भी गीता और गोविन्द का नाम प्रधान है ।
१३. गीता ज्ञान का प्रवाह है ।
१४. भगवान की प्राप्ति के लिए श्रीगीता जी का अर्थसहित
अभ्यास करना चाहिए ।
१५. गीताजी का श्लोक अर्थ, भाव, विषयसहित जो याद करता है,
वह पहली कक्षा पास है ।
१६. गंगा तो जो उसमे जाकर स्नान करता है उसी को मुक्त करती
है, परन्तु गीता तो घर-घरमें जाकर उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखलाती है ।
१७. गीता गायत्री से बढ़कर है, गायत्री जप से मनुष्य की
मुक्ति होती है, यह बात ठीक है, किन्तु गायत्री-जप करने वाला भी स्वयं ही मुक्त
होता है, पर गीता का अभ्यास करने वाला तो तरन-तारण बन जाता है । जब मुक्ति के दाता स्वयं भगवान ही उसके हो
जाते है, तब मुक्ति की तो बात ही क्या है । मुक्ति उसकी चरणधूलि में निवास करती है
। मुक्ति का तो वह सत्र खोल देता है ।
१८. वास्तव में गीताके सामान संसार में यज्ञ, दान, तप,
तीर्थ, व्रत, संयम और उपवास आदि कुछ नहीं है ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, परमार्थ-सूत्र-संग्रह पुस्तक से, पुस्तक कोड ५४३, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!