|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक शुक्ल दसमीं, मंगलवार, वि०स० २०७०
**श्रीरामचरितमानस**
गत ब्लॉग से
आगे.......तत्पश्चात भगवान् ने सब प्रजाजनों
के साथ कैसा उच्च कोटि का बर्ताव किया कि सबके साथ एक साथ यथायोग्य मिले |
श्रीगोस्वामी जी कहते हैं—
प्रेमातुर सब लोग निहारी | कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी ||
अमित रूप प्रगटे तेहि काला | जथाजोग मिले सबहि कृपाला ||
छन महिं सबहि मिले भगवाना | उमा मरम यह काहुँ न जाना ||
इसके अनंतर भगवान् का जो प्रजाजनों के
साथ राज्यशासन का बर्ताव है, उसकी तो उपमा भी नहीं दे सकते | आज कहीं भी
उत्तम-से-उत्तम व्यवस्था-प्रबन्ध होता है तो उसके लिए यह कहावत चली आती है कि वहाँ
तो ‘रामराज्य’ है | भगवान् श्रीराम के राज्य का वर्णन करते हुए गोस्वामीजी ने
बतलाया है—
राम राज बैठें त्रैलोका | हरषित भए गए सब सोका ||
बयरु न कर काहू सन कोई | राम प्रताप बिषमता खोई ||
बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग |
चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ||
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना | नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना ||
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं |
काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं ||
राम राज कर सुख संपदा | बरनि न सकइ फनीस सरदा ||
एक नारि ब्रत रत सब झारी | ते मन बच क्रम पति हितकारी ||
खग मृग सहज बयरु बिसराई | सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई ||
इससे हमें, आश्रित जनों के साथ कैसा
बर्ताव करें—यह शिक्षा मिलती है | इसके बाद, भगवान् ने प्रजा को उपदेश दिया है |
भगवान् के वचनों में नीति, धर्म, विनय और प्रेम भरा हुआ है | भगवान् कहते हैं—
सुनहु सकल पुरजन मम बानी | कहउँ न कछु ममता उर आनी ||
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई | सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई ||
जौं अनीति कछु भाषौं भाई | तौ मोहि बरजहु भय बिसराई ||
बड़ें भाग मानुष तनु पावा | सुर दुर्लभ सब ग्रन्थन्हि गावा ||
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा | पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ||
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ |
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाइ ||
एहि तन कर फल बिषय न भाई | स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ||
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं | पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं ||
सभी पाठक-पाठिकाओं से तथा जनता से प्रार्थना है कि
श्रीभगवान के उपर्युक्त चरित्र और वचनों के अनुसार अपना जीवन बनावें | सरकार से और
विद्वान अनुभवी शिक्षकों से एवं धनी-दानी सज्जनों से हमारा सविनय निवेदन है कि वे
श्रीरामचरितमानस का स्वयं अध्ययन और अनुभव करें तथा जनता के हित के लिए स्कुल,
कालेज, पाठशाला आदि शिक्षा-संस्थाओं के पाठ्यक्रम में रखवाकर इसका प्रचार करें | बालकों के लिए रामचरितमानस की शिक्षा बहुत ही आदर्श है
| धार्मिक दृष्टि के सिवा काव्य, साहित्य और इतिहास की दृष्टि से तथा नैतिक, सामाजिक
और व्यावहारिक दृष्टि से भी यह ग्रन्थ बहुत ही अनुपम, सब प्रकार से उपयोगी, सरल और
मधुर है तथा चित्तको आकर्षण करनेवाला और सब प्रकार की शिक्षा प्रदान करनेवाला है |
अतः इसका हरेक प्रकार से प्रचार करना चाहिए | हरेक
भाई-बहिन को उचित है कि अपने घर में भी यह ग्रन्थ मँगाकर रखें और इसको पढ़ने-पढ़ाने
की कोशिश करें |
—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, ‘साधन-कल्पतरु’ पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!