※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

आप सभी पाठक सज्जनों को गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनायें |

|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी (गीता जयंती), शुक्रवार, वि०स० २०७०
** सेठजी का निवेदन **
         मेरी यह प्रार्थना है कि गीता का अनुशीलन अर्थ और भावसहित करना चाहिए यानी गीता में प्रवेश करके उसका अध्ययन करना चाहिए | गीता का भाव बड़ा गंभीर है | जैसे समुद्र की थाह नहीं, वैसे ही गीता के भावों की थाह नहीं |
          आपलोग किसी अंश में यह मानते होंगे कि यह गीता का जाननेवाला है; पर जब मैं खयाल करता हूँ, तब मुझे यही मालूम होता है कि मैं इसका शतांश भी नहीं जानता | एक जन्म में नहीं, कई जन्मों तक मैं गीता का ही अध्ययन करता रहूँ तो भी उसके भावों की समाप्ति नहीं | मेरी आयु समाप्त हो सकती है, पर गीता के भावों की समाप्ति नहीं हो सकती |
          इसलिए प्रत्येक भाईको अपना जीवन गीतामय बनाना चाहिए | मनुष्य-जन्म पाकर जिसका जीवन गीतामय है, उसी का जीवन धन्य है | जिनका सारा जीवन गीतामय होता है, उनके दर्शन, भाषण, स्पर्श और वार्तालाप से दूसरे मनुष्य पवित्र हो जाते हैं |
         गीता बहुत ही उच्चकोटि का ग्रन्थ है | गीता की संस्कृत बहुत ही सरल, सुन्दर और मधुर है | एक श्लोक को भी आप भावसहित धारण कर लें, तो आपके आत्मा का कल्याण हो सकता है | गीता में ऐसे सैकड़ों श्लोक हैं, जिनमें से एक श्लोक के अनुसार जीवन बनानेपर आत्माका उद्धार हो सकता है |
          गीताको हम गंगा से बढ़कर कहें तो अनुचित न होगा; क्योंकि गंगा में नहानेवाला मनुष्य तो स्वयं ही मुक्त होता है—यह बात शास्त्रों में लिखी है; किन्तु गीतारूपी गंगा में स्नान करनेवाला स्वयं तो मुक्त हो ही जाता है, दूसरों का भी उद्धार कर सकता है |
         गीता का अच्छी प्रकार अध्ययन करनेवाले को अपने आत्मा के कल्याण अन्य शास्त्रों की आवश्यकता नहीं पड़ती | इससे यह नहीं समझना चाहिए कि मैं अन्य शास्त्रों की अवहेलना करता हूँ | गीता एक ऐसा ग्रन्थ है कि उसे हमारे शास्त्रों में सबसे बढ़कर भी कह दें तो अत्युक्ति नहीं होगी; क्योंकि श्रीवेदव्यासजी ने स्वयं कहा है—
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रसंग्रहैः |
या  स्वयं  पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता ||
(महा० भीष्म० ४३ | १)
‘गीता का गायन अच्छी प्रकार करना चाहिए; गीता का अध्ययन अच्छी प्रकार करना चाहिए, गीता का मनन अच्छी प्रकार से करना चाहिए’, यही है—‘गीता सुगीता कर्तव्या |’ फिर अन्य शास्त्रों के संग्रह की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह गीता स्वयं भगवान् कमलनाभ के मुखकमल से निकली है | अन्य जितने भी शास्त्र हैं, वे ऋषियों के मुख से निकले हैं | वेद ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुए हैं; परन्तु गीता तो स्वयं भगवान् के मुखकमल से प्रकट हुई है | इसलिए हम उसको सर्वोपरि कह दें तो कोई अत्युक्ति नहीं |
          गीताको हम गायत्री से भी बढ़कर कह सकते हैं | गायत्री के जप से जपनेवालेका कल्याण होता है, किन्तु गीता का अर्थ और भाव सहित अच्छी प्रकार अध्ययन करके धारण कर लेनेपर वह दूसरों का भी कल्याण कर सकता है | इसलिए हम गीता को गायत्री से भी बढ़कर कह सकते हैं |
          यदि मनुष्य का जन्म पाकर किसी ने गीता का अभ्यास नहीं किया, गीता का अध्ययन नहीं किया, गीता का मनन नहीं किया, गीता के अनुसार अपना जीवन नहीं बनाया तो मैं समझता हूँ कि उसका जन्म व्यर्थ है | हमको ऐसा अभ्यास करना चाहिए कि हमारी वाणी में गीता, हमारे हृदय में गीता, हमारे कानों में गीता, हमारे कंठ में गीता, हमारे रोम-रोम में गीता और हमारे जीवन में गीता भरी हो—वह गीतामय हो | जो ऐसा है, उसी के लिए हम कह सकते हैं कि उसका जीवन धन्य है, उसके माता-पिता धन्य हैं |
          ऐसा पुरुष संसार में गीता का प्रचार करके अपना ही नहीं, हजारों-लाखों व्यक्तियों का उद्धार कर सकता है | आज तुलसीदासजी नहीं हैं, किन्तु उन्होंने रामायण की रचना करके संसार का बड़ा भारी उपकार किया है | उससे हजारों का उद्धार हो रहा है और जबतक वह रहेगी, उद्धार होता रहेगा |
          इसी प्रकार जो मनुष्य गीता का अच्छी प्रकार अनुशीलन करके उसके अनुसार अपना जीवन बना लेता है, अपने जीवन को गीता के प्रचार में लगा देता है, उस पुरुष के द्वारा ही वस्तुतः संसार में गीता के भावों का प्रचार होता है | उसके द्वारा भविष्य में भी कितनों का उद्धार होता रहेगा, कहा नहीं जा सकता | भगवान् ने गीता के प्रचार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है | भगवान् ने यहाँ तक कह दिया है कि ‘जो गीता-शास्त्र का मेरे भक्तों में प्रचार करता है, इसके अर्थ और भाव को धारण करता है, वह मेरी भक्ति के द्वारा मुझे प्राप्त होता है | उसके समान मेरा प्रिय कार्य करनेवाला न कोई हुआ, न हो सकता है और न होगा |’ यही भाव भगवान् ने गीता के अठारहवें अध्याय के ६८, ६९वें श्लोकों में दिखलाया है इस बात को खयाल में रखकर अपना जीवन गीतामय बनाना चाहिये | मैंने जिस दिन यह श्लोक पढ़ा और इसका अर्थ कुछ समझा, तभी से मेरे हृदय में यह भाव आया कि अपने जीवन को गीता में लगाना चाहिये | मैं अभीतक अपने जीवन को गीतामय बना नहीं सका, किन्तु इस बात को मैं बहुत ही उत्तम समझता हूँ | इसलिए सबसे प्रार्थना करने का मेरा अधिकार है कि आपको अपना जीवन गीतामय बनाना चाहिए; फिर अपने घरमें, अपने प्रान्त में, अपने देश में सारी त्रिलोकी में गीता का खूब जोरों से प्रचार करना चाहिए |
श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, ‘साधन-कल्पतरु’ पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!