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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष कृष्ण, दशमी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
पाप और पुण्य
प्रश्न (क) पुण्य और पाप क्या हैं ?
उत्तर (क) यदपि पाप-पुण्य का विषय बहुत गंभीर है तथा इसका
दायरा बहुत विस्तृत है तथापि संक्षेप में साररूप यही कहा जा सकता है का
‘मानव-कर्तव्य ही पुण्य
या सुकृत है और अकर्तव्य ही पाप या दुष्कृत है |’
प्रश्न (ख) जो
मनुष्य ईश्वर और किसी धर्मशास्त्र पर विश्वास नहीं करता,वह शास्त्रीय विधि-निषेध
को तो पुण्य-पाप मानता नहीं, फिर उसके लिये पाप-पुण्य की व्यवस्था किस प्रकार हो
सकती है ?
उत्तर (ख) पुण्य-पाप अथवा कर्तव्य-अकर्तव्य के निर्णय में
शास्त्र (धर्मग्रंथ) ही प्रमाण है , इसलिए श्रीभगवान ने अर्जुन से कहा की ‘तेरे
लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था
में शास्त्र ही प्रमाण है, ऐसा जान कर तुझे शास्त्र-विधि से नियत किये हुए कर्म ही
करने चाहिये |’ (गीता १६|२४)
परन्तु जिस मनुष्य का इश्वर और शास्त्र में विश्वास नहीं
है, शास्त्र की व्यवस्था न मानने पर भी, उसके लिए भी मानव-कर्तव्य ही पुण्य है और
अकर्तव्य ही पाप है |
अब यह प्रश्न आता है की शास्त्र को न मानने वाला मनुष्य
कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्णय किस प्रकार करे ? इसका उत्तर यह है की उसे प्राचीन
और वर्तमान महापुरुषों के किये हुए निर्णय और आचरण को प्रमाण मानकर अपने कर्तव्याकर्तव्य
का निश्चय करना चाहिये |
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय, कोड ३०९, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!