※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

तीर्थो में पालन करने योग्य कुछ उपयोगी बाते -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

पौष कृष्ण, त्रयोदशी, सोमवार, वि० स० २०७०


 तीर्थो में पालन करने योग्य कुछ उपयोगी बाते  -१-

 

संसार में चार पदार्थ हैं  धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । तीर्थो में (पवित्र स्थानों में) यात्रा करते समय अर्थ (धन) तो व्यय होता है । अब रहे धर्म, काम और मोक्ष सो जो राजसी पुरुष होते है वे तो तीर्थों में संसारिक कामना की पूर्ती के लिए जाते है और जो सात्विक पुरुष होते है वे धर्म और मोक्ष के लिए जाते है । धर्म का पालन भी वे आत्मोउद्धार के लिए निष्काम भाव से करते है । अतेव कल्याणकामी पुरुषों को तो अन्तकरण की शुद्धि और परमात्मा प्राप्ति के लिए ही तीर्थों में जाना चाहिये ।

तीर्थ में जाकर किस प्रकार क्या-क्या करना चाहिये,ये बाते बतलाई जाती है ।

(१)      पैदल यात्रा करते समय मन के द्वारा भगवान के स्वरुप का ध्यान और वाणी के द्वारा नाम-जप करते हुए चलना चाहिये । यदि बहुत आदमी साथ हो तो सबको मिलकर भगवान का नाम-कीर्तन करते हुए चलना चाहिये । रेलगाड़ी आदि सवारीयों पर यात्रा करते समय भी भगवान को याद रखते हुए ही धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन अथवा भगवान के नाम का जप करते रहना चाहिये ।

(२)      गंगा, सिन्धु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, कृष्णा, सरयू, मानसरोवर, कुरक्षेत्र, पुष्कर, गंगासागर आदि तीर्थों में उनके गुण, प्रभाव, तत्व, रहस्य और महिमा का स्मरण करते हुए आत्मशुद्धि और कल्याण के लिए स्नान करना चाहिये ।

(३)      तीर्थों में श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीशिव, श्रीविष्णु आदि भगवदविग्रहो का श्रद्धा-प्रेमपूर्वक दर्शन करते हुए उनके गुण, प्रभाव, लीला, तत्व, रहस्य और महिमा आदि का स्मरण करके दिव्य स्त्रोतों के द्वारा आत्मउद्धार के लिए उनकी स्तुति-प्रार्थना करनी चाहिये ।

(४)      तीर्थों में साधु, महात्मा, योगी और भक्तों के दर्शन, सेवा, सत्संग, नमस्कार, उपदेश, आदेश और वार्तालाप के द्वारा विशेष लाभ उठाने के लिए उनकी खोज करनी चाहिये ।

भगवान ने अर्जुन के प्रति गीता में कहा है-‘उस ज्ञान को तू समझ; क्षोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के पास जाकर, उनको भली भाति दंडवत प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे । शेष अगले ब्लॉग में .....     
         

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!