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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष शुक्ल, षष्टी, रविवार,
वि० स० २०७०
गली-गलीमेँ गीता-ही-गीता हो जाय,ऐसा कोई भी घर बाकी नहीँ रहने दे जिस घर मेँ गीता न हो।जिस घरमेँ गीता नहीँ, वह घर श्मशान के समान है।
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जिस घर मेँ गीता का पाठ
नहीँ हो, वह यमपुरी के समान है।
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क्रिया,
कण्ठ वाणी तथा हृदयमेँ गीता धारण करनी चाहिए।
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गीता कंठस्थ कर लेँ हृदय
मेँ धारण कर ले गीता के सिद्धांत और उसके भाव एक हैँ।
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एक गीताके द्वारा
हजारोँ-लाखोँ-करोड़ोँका कल्याण हो सकता है,इसकी
बड़ी विलक्षणता है।
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गीतारुपी वृक्ष को सीँचो,
यह संसारको काटता है।
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सबके हृदय कंठमेँ गीता
बसा देवेँ।
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मेरा जीवन प्राण-सबकुछ
गीता है।एक तरफ सब धन एक तरफ गीता होनेपर भी सांसारिक धनसे गीताकी तुलना नहीँ की
जा सकती।
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गीता की स्तुति इस
प्रकार गावेँ-
त्वमेव
माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या
द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
गीता
पोषण करती है इसलिए माता है । गीता रक्षा करती है इसलिए पिता है।भाई तो धोखा दे
सकता है गीता धोखा नहीँ देती। मौकेपर सखा भी साथ छोड़ देते हैँ,पर गीता नहीँ छोड़ती। यही असली विद्या है जिसके पास गीता धन है उसके पास
सबकुछ है।
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गीता भगवानका हृदय वाणी
श्वास आदेश सबकुछ है।
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हमारा सर्वस्व गीता है।
सारा धन भले ही चला जाय गीता हमारे पास रह जाय।
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गीताजी मेँ एक-एक साधन
की अंतिम सीमातक का साधन लिखा है।
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मेरे तो भगवद्गीता ही
आधार है।
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परमात्माके नामका जप
गीताके अभ्यास से प्रत्यक्ष लाभ होता है,इससे
बढ़कर संसारमेँ कोई नहीँ है।सत्संग अच्छे पुरुषोँका संग इसकी जड़ है,परमात्माका ध्यान इसका फल है।
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प्रथम तो गीताका प्रचार
अपनी आत्मामेँ करना चाहिए। पहले सिपाही बनकर कवायद सीखेँगे तभी तो कमांडर बनकर
सिखायेँगे। आप जितनी मदद चाहेँ उतनी मिल सकती है। एक ही व्यक्ति स्वामी
शंकराचार्यजीने कितना प्रचार किया,भगवान की
शक्ति थी।
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हरेक प्रकारसे गीताका
प्रचार करना चाहिए।भगवानकी भक्तिके सभी अधिकारी हैँ।गीता बालक,
स्त्री, वृद्ध, युवा-सभीके
लिए है।
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सार यही है कि भगवानके
कामके लिए कटिबद्ध होकर लग जाना चाहिए।स्वधर्मे निधनं
श्रेयः अपने धर्म-पालनमेँ मरना भी पड़े तो कल्याण है। बंदरोँने भगवानका काम
किया, उनमेँ क्या बुद्धि थी।गीताका प्रचार भगवानका ही काम
है।निमित्त कोई भी बन जाय,भगवानकी शक्तिको मत भूलो 'तव प्रताप बल नाथ' मान-बड़ाई-प्रतिष्ठाके
ठोकर मारकर काम करो,फिर देखो भगवान पीछे-पीछे फिरते हैँ,सारा काम स्वयं ही करते हैँ,तैयार होकर करो,डरो मत,विश्वास रखो।
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गीताका आदरपूर्वक पाठ
करो। गीताका आदर आप करेँगे तो गीता आपका आदर करेगी।
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गीताके एक श्लोक और एक
ही चरणको धारण कर ले तो उद्धार हो जानेपर सारी गीताको भी इसलिए याद करे कि भगवानका
प्रिय बनना है, क्योँकि यह भगवानका सिद्धांत है, भगवान का हृदय है।गीताकी जितनी महिमा गायी जाय उतनी थोड़ी है।हमेँ जितना
समय मिले उसमेँ लगावेँ और उसे हृदयमेँ धारण करके क्रियामेँ लायेँ।
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मरनेके समय गीताके
श्लोकका उच्चारण करता हुआ मरे या भाव समझता हुआ मरे तो भी कल्याण हो जाता है।
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शास्त्रोँमेँ तो यहाँतक
आया है कि मरते समय गीताकी पुस्तक मनुष्यके ऊपर मस्तकपर या सिरहाने रख दे तो भी
कल्याण हो जाता है,फिर हृदयमेँ धारण करे तब तो बात ही क्या है?
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जैसे हनुमानजी महाराजने
राम-नामको रोम-रोममेँ रमा लिया था,इसी तरह
गीताको रोम-रोममेँ भरे,रोम-रोममेँ रमा लेवे।
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गीताका असली प्रचार तो
यह है कि अपने आचरणसे वैसे करके दूसरेको प्रेमसे समझा दे।गीताकी एक भी बात किसीको
पकड़ा दे तो यह गीताका असली प्रचार है।जीवन बना दे,अर्थको
समझाकर तात्पर्य बतला दे धारण करा दे।
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गीताके श्लोक मंत्र
हैँ।गीता मेँ एक एक बात तौल तौलकर रखी है,गीताको
पाँचवाँ वेद भी मानो तो कोई अतिश्योक्ति नहीँ है।
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श्री जयदयाल गोयन्दका सेठजी
(अमृत वचन पुस्तक से )