※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

.....गीताजयंती विशेष लेख ......गीता -८-....... एकादशी से एकादशी तक ......

।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

मार्गशीर्ष शुक्ल, पञ्चमी, शनिवार, वि० स० २०७०


·        गीताजी की आज्ञा भगवानकी आज्ञा समझनी चाहिए।

·        मेरी दृष्टिमेँ गीतासे बढ़कर संसारमेँ और कोई शास्त्र है ही नहीँ, गीता वेदसे भी बढ़कर है।


·        गीता भगवानकी साक्षात वाङ्गमयी मूर्ति है ।

·        गीता भगवानके साक्षात श्वास है ।



·        गीताजीका अर्थसहित, भावसहित अवश्य ही मनन करना चाहिए।

·        गीता हमलोगोँको त्याग सिखलाती है-आसक्तिका त्याग, अहंताका त्याग, ममताका त्याग ।


·        जिस तरह भगवानका सबमेँ प्रवेश है यानी भगवान व्यापक हैँ,उसी तरह अपने लोगोँका गीतामेँ प्रवेश होना चाहिए यानी हमारे रोम-रोममेँ गीता होनी चाहिए।

·        कल्याण तो इनमेँसे किसी एक ही बातसे हो जाय-

(क) गीताजीमेँ प्रवेश हो जाय,बस इतनेमेँ ही मामला समाप्त है ।
(ख) सबको नारायणका स्वरुप समझकर सेवा करे,इतनेमेँ ही कल्याण हो  जायगा।
(ग) गीताजीका एक ही श्लोक धारण कर ले,इतनेमेँ ही काम बन जायगा ।
गीताका ज्ञान ,गोविँद का ध्यान गंगा का स्नान गौका दान गायत्रीका गान-ये पाँचो बहुत उत्तम हैँ सभी कल्याण करनेवाली है।

·        गीता के अनुसार अपना जीवन बनाना चाहिए।

·        गीताका प्रचार लोगोँ मेँ करना चाहिए।भगवानकी भक्तिका प्रचार करना,लोगोँको भक्तिमार्गमेँ लगाना इससे बढ़कर कोई काम नहीँ है।

·        गीता-प्रचारको सभी बातोँसे ऊँची समझकर भगवान कहते हैँ-

न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भूवि॥(गीता 18.69)

उससे (गीता प्रचारकसे) बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योँमेँ कोई भी नहीँ है;तथा पृथ्वीभरमेँ उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्यमेँ होगा भी नहीँ।


·        गीताका जो प्रचार करते हैँ तथा जो लोगोँको इसमेँ लगाते हैँ,उनसे बढ़कर संसारमेँ कोई भी नहीँ है।

·        गीता-प्रचार करनेवाले लोगोँसे बढ़कर मेरा प्यारा कोई नहीँ है।

·        गीताकी पुस्तकको खूब आदर देना चाहिए।


·        गीताको भगवान से भी बढ़कर बतावेँ तो भगवान नाराज नहीँ होँगे।

·        गीतामेँ स्नान करनेवाला संसारका उद्धार कर सकता है,गीता गायत्रीसे भी बढ़कर है।



·        गीता सुनते हुए मरनेवाला पाठ करनेवाला अर्थसहित पाठ करनेवाला अर्थ समझनेवाला धारण करनेवाला-ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैँ।

·        गीता निष्पक्ष ग्रंथ है।वाममार्गकी भी गीता निँदा नहीँ करती।

·        सारे शास्त्र दब जायँगे तो गीता जीती-जागती रह जायगी।

·        गीताके प्रचारके लिए तो हमेँ सेनाकी तरह तैयार हो जाना चाहिए।

·        गीता का पाठ सुननेवाला भी मुक्त हो जाता है।

·       
- श्री जयदयाल गोयन्दका सेठजी   (अमृत वचन पुस्तक से )