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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष शुक्ल, तृतीया, गुरूवार
वि० स० २०७०
.....गीताजयंती विशेष
लेख ..... एकादशी से एकादशी तक ......
गीता -७-
५५. गीताधर्म के प्रचार में सबको यत्नवान होना चाहिये, इससे
सबकों आत्यन्तिक सुखकी प्राप्ति हो सकती है । यही एक सरल, सहज और मुख्य उपाय है ।
५६. सभी देशों की सभी जातियों में गीताशास्त्र का प्रचार
बड़े जोर के साथ करना चाहिए ।
५७. गीतापाठ करने वालों में सदाचार, श्रद्धा, भक्ति और
प्रेम का होना आवश्यक है, क्योकि भगवान अश्रद्धालु, सुनना न चाहने वाले,
आचरणभ्रष्ट, भक्तिहीन मनुष्यों में इसके प्रचार का निषेध करते है । (गीता १८|६७)
५८. केवल एक गीता के प्रचार से ही पृथ्वी के मनुष्य मात्रका
उद्धार हो सकता है ।
५९. गीता प्रचार के लिए भगवान ने किसी काल, देश, जाति और
व्यक्तिविशेष के लिए रूकावट नहीं की है, वरं अपने भक्तों में गीता का प्रचार करने
वालों को सबसे बढ़कर अपना प्रेमी बतलाया है ।
६०. गीता में बतलाये हुए साधनों के अनुसार आचरण करने का
अधिकार मनुष्यमात्र को है । जगदगुरु भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश समस्त मानवजाति
के लिए है – किसी खास वर्ण अथवा किसी खास आश्रम के लिए नहीं । यही गीता की विशेषता
है ।
६१. मुक्ति में मनुष्य मात्र का अधिकार है और गीता
मुक्ति-मार्ग बतलानेवाला एक प्रधान ग्रन्थ है,इसलिए परमेश्वर में भक्ति और श्रद्धा
रखने वाले सभी आस्तिक मनुष्यों का इसमें अधिकार है ।
६२. गीतारूपी दुग्धमृत अर्जुनरूप वत्सके व्याज से ही विश्व
को मिला, परन्तु वह इतना सर्वभौम और सुमधुर है की सभी देश, सभी जाति, सभी वर्ण और
सभी आश्रम के लोग उसका अबाधिरूप से पान कर अमरत्व प्राप्त कर सकते है ।
६३. जैसे भगवत्प्राप्ति में सबका अधिकार है वैसे ही गीता के
भी सभी अधिकारी हैं ।
६४. गीता सभी वर्णाश्रमवालों के लिए है । सभी अपने-अपने
वर्णाश्रम के कर्मों को करते हुए साख्य या योग – दोनों में से किसी एक निष्ठ के
द्वारा अधिकारानुसार साधन कर सकते है ।
६५. गीता में कर्म, भक्ति और ज्ञान – तीनों सिद्धांतों की
ही अपनी-अपनी जगह प्रधानता है ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, परमार्थ-सूत्र-संग्रह पुस्तक से, पुस्तक कोड ५४३, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!