।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, अमावस्या, सोमवार,
वि० स० २०७०
.....गीताजयंती विशेष
लेख ..... एकादशी से एकादशी तक ......
गीता -४-
२८. गीता सर्वशास्त्रमयी है । गीता में सारे शास्त्रों का
सार भरा हुआ है । उसे सारे शास्त्रों का खजाना कहे तो अत्युक्ति न होगी ।
२९. भगवदगीता एक ऐसा अनुपमेय शास्त्र है जिसका एक भी शब्द
सदुपदेश से खाली नहीं है । गीता में एक भी शब्द
ऐसा नहीं है जो रोचक कहा जा सके । उसमे जितनी भी बात कही गयी है, वह सभी
अक्षरश: यथार्थ है ।
३०. श्रीम्द्भभगवदगीता साक्षात् भगवान की दिव्य वाणी है ।
इसकी महिमा अपार है, अपरिमित है । उसका यथार्थ में वर्णन कोई नहीं कर सकता ।
३१. यह गीता उन्ही भगवान के मुखकमल से निकली है जिनकी नाभि
से कमल निकला । उस कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए । ब्रह्मा जी से चारों वेद प्रगट
हुए और उनके आधार पर ही समस्त ऋषिगणों ने सम्पूर्ण शास्त्रों की रचना की । अत:
गीता को अच्छी प्रकार भावसहित समझ कर धारण
कर लेने पर अन्य सब शास्त्रों की आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योकि सारे शास्त्रों का
विस्तार तो नाभि से हुआ और गीता स्वयं भगवान के मुखकमल से कही गयी है ।
३२. गीता की रचना इतनी सरल और सुन्दर है की थोडा अभ्यास
करने से मनुष्य इसको सहज ही समझ सकता है,परन्तु इसका आशय इतना गूढ़ और गंभीर है की
आजीवन निरन्तर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अन्त नहीं आता ।
३३. भगवान के गुण, प्रभाव, स्वरुप, मर्म और उपासना का तथा
कर्म एवं ज्ञान का वर्णन जिस प्रकार इस गीता-शास्त्र में किया है वैसा अन्य
ग्रन्थों में एक साथ मिलना कठिन है ।
३४. एकाग्रचित होकर श्रद्धा-भक्ति सहित विचार करने से
गीताके पद-पद में रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष प्रतीत होता है ।
३५. जैसे वेद परमात्मा का नि:श्वाश है इसी प्रकार गीता भी
साक्षात् भगवान का वचन होने से भगवत-स्वरुप ही है । अतएव भगवान की भाँती गीता का
स्वरुप भी भक्तों को अपनी भावना के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से भासता
है ।
३६. कृपासिन्धु भगवान ने अपने प्रिय सखा भक्त अर्जुन को
निमित बनाकर समस्त संसार के कल्याणार्थ इस अद्भुत
गीता-शास्त्र का उपदेश किया है ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, परमार्थ-सूत्र-संग्रह पुस्तक से, पुस्तक कोड ५४३, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!