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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, प्रतिपदा, गुरूवार, वि० स० २०७०
तीर्थो में पालन करने योग्य कुछ उपयोगी
बाते -४-
गंगा, यमुना और देवालय आदि तीर्थस्थानों से बहुत दूरी पर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिये । जो मनुष्य गंगा-यमुना आदि के तटपर मल-मूत्र का त्याग करता है तथा गंगा-यमुना आदि में दतुअन और कुल्ले करता है, वह स्नान-पान के पुण्य को न पाकर पाप का भागी होता है ।
काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद-मात्सर्य, राग-द्वेष, दम्भ-कपट, प्रमाद-आलस्य आदि दुर्गुणों का तीर्थों में सर्वथा त्याग करना चाहिये ।
तीर्थयात्रा में अपने संगवालों में से किसी साथी तथा आश्रित को भारी विपति आने पर काम, क्रोध या भय के कारण उसे अकेले कभी नहीं छोड़ना चाहिये । महारज युद्धिस्टरने तो स्वर्ग का तिरस्कार करके परम धर्म समझकर अपने साथी कुत्ते का भी त्याग नहीं किया । जो लोग अपने किसी साथी या आश्रित के बीमार पड जानेपर उसे छोड़कर तीर्थ-स्नान और भगवदविग्रह के दर्शन आदि के लिए चले जाते है उनपर भगवान प्रसन न होकर उलटे नाराज हो जाते है; क्योकि ‘परमात्मा ही सबकी आत्मा है’ इस न्यास से उस आपदग्रस्त साथी का तिरस्कार परमात्मा का ही तिरस्कार है । इसलिए विपतिग्रस्त साथी का त्याग तो भूल कर भी नहीं करना चाहिए ।....शेष अगले ब्लॉग
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!