※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

पौष शुक्ल, पूर्णिमा, गुरुवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -२-

 
गत ब्लॉग से आगे... स्वाद-शौक, ऐश-आराम, कन्चन-कामिनी, मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा आदि इस लोक और परलोक के विषयभोगों को प्राप्त करने की इच्छा, स्फुरणा और संकल्प होना-यह मन की स्वार्थ-विषय की क्रियाएँ है ।

 
मन में किसी भी नगर, मकान, वन, पहाड़, नदी, तालाब, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि संसारिक पदार्थों को लेकर जो व्यर्थ स्फुरणाएँ होने लगती है, जिनसे अपना कोई सम्बन्ध या प्रयोजन नहीं है तथा जिनमे न परमार्थ सिद्ध होता है और न स्वार्थ ही एवं जिनमे न पुण्य है न पाप-ये सब मन की व्यर्थ स्फुरणाएँ है । प्राय: अधिकाश मनुष्यों के ऐसे ही स्फुरणाएँ हुआ करती है ।


काम-क्रोध, लोभ-मोह, राग-द्वेष, नास्तिकता आदि भावोंकी, झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार, हिंसा आदि पापकर्म करनेकी तथा कर्तव्य कर्मों को न करनारूप प्रमाद आदि स्वत: ही इच्छा, स्फुरणा और संकल्प होना अथवा जान-बूझ कर करना-ये सब मन की पापमयी क्रियाएँ हैं ।    
 

इन चारों में पहली परमार्थविषयकी क्रियाएँ सात्विकी, दूसरी स्वार्थविषयकी क्रियाएँ राजसी और तीसरी व्यर्थ क्रियाएँ तथा चौथी पापमयी क्रियाएँ तामसी है ।
 

इनमे सात्विकी क्रियाएँ तो बहुत ही कम होती है । अधिकाशं में राजसी-तामसी ही होती है । सात्विकी क्रियाओं में भी श्रद्धा, भक्ति और वैराग्यपूर्वक नित्य-निरन्तर परमात्मा का स्मरण-चिन्तन करना ही सर्वोपरी है । अत: मनुष्यों का कर्तव्य है ही मन से राजसी और तामसी इच्छा, स्फुरणा और संकल्पों का सर्वथा त्याग करके केवल अध्यात्मविषय की सात्विकी उत्मोतम क्रियाओं के लिए ही जी तोड़ प्रयास करे ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!