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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, पूर्णिमा, गुरुवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -२-
गत ब्लॉग से आगे... स्वाद-शौक, ऐश-आराम, कन्चन-कामिनी,
मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा आदि इस लोक और परलोक के विषयभोगों को प्राप्त करने की इच्छा,
स्फुरणा और संकल्प होना-यह मन की स्वार्थ-विषय की क्रियाएँ है ।
काम-क्रोध, लोभ-मोह, राग-द्वेष, नास्तिकता आदि
भावोंकी, झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार, हिंसा आदि पापकर्म करनेकी तथा कर्तव्य कर्मों
को न करनारूप प्रमाद आदि स्वत: ही इच्छा, स्फुरणा और संकल्प होना अथवा जान-बूझ कर
करना-ये सब मन की पापमयी क्रियाएँ हैं ।
इन चारों में पहली परमार्थविषयकी क्रियाएँ सात्विकी,
दूसरी स्वार्थविषयकी क्रियाएँ राजसी और तीसरी व्यर्थ क्रियाएँ तथा चौथी पापमयी
क्रियाएँ तामसी है ।
इनमे सात्विकी क्रियाएँ तो बहुत ही कम होती है । अधिकाशं
में राजसी-तामसी ही होती है । सात्विकी क्रियाओं में भी श्रद्धा, भक्ति और
वैराग्यपूर्वक नित्य-निरन्तर परमात्मा का स्मरण-चिन्तन करना ही सर्वोपरी है । अत:
मनुष्यों का कर्तव्य है ही मन से राजसी और तामसी इच्छा, स्फुरणा और संकल्पों का
सर्वथा त्याग करके केवल अध्यात्मविषय की सात्विकी उत्मोतम क्रियाओं के लिए ही जी
तोड़ प्रयास करे ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!