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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, द्वितीया, शनिवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -४-
गत ब्लॉग से आगे... हमको यह मनुष्य-जन्म
मिला है-आत्मा के कल्याण के लिए । किन्तु जो मनुष्य आत्मकल्याण के कार्य को छोड़कर संसार
के फंदे में फँस रहा है, उससे बढ़कर मूर्ख और कौन होगा ।
एकान्त में बैठकर नित्य यह विचार करे की ईश्वर क्या है ? मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ?
मैं क्या कर रहा हूँ ? मुझे क्या करना चाहिये ? इस प्रकार विचारकर दिन-पर-दिन अपनी
उन्नति में अग्रसर होना चाहिये ।
मनुष्य-शरीर पाकर यदि परमात्मा की
प्राप्ति नहीं हुई, उनका तत्वज्ञान नही हुआ तो यह जन्म व्यर्थ ही गया । मानवजन्म का समय बहुत ही
दामी है, इसको सोच-समझ कर बिताना चाहिये ।
भगवत्प्राप्ति के जितने भी साधन है, उन सबमे उत्तम-से-उत्तम साधन है-भगवान को हर समय याद रखना । इसके
समान और कोई साधन है ही नहीं । चाहे कोई उत्तम-से-उत्तम भी कर्म हो, पर वह
भगवतस्मृति के समान नही है । चाहे भक्ति का मार्ग हो, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का
। सभी मार्गोंमें भगवान की स्मृति की ही परम आवश्यकता है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!