※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 18 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, द्वितीया, शनिवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -४-


गत ब्लॉग से आगे... हमको यह मनुष्य-जन्म मिला है-आत्मा के कल्याण के लिए । किन्तु जो मनुष्य आत्मकल्याण के कार्य को छोड़कर संसार के फंदे में फँस रहा है, उससे बढ़कर मूर्ख और कौन होगा । 

एकान्त में बैठकर नित्य यह विचार करे की ईश्वर क्या है ? मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? मैं क्या कर रहा हूँ ? मुझे क्या करना चाहिये ? इस प्रकार विचारकर दिन-पर-दिन अपनी उन्नति में अग्रसर होना चाहिये ।

मनुष्य-शरीर पाकर यदि परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई, उनका तत्वज्ञान नही हुआ तो यह जन्म व्यर्थ ही गया । मानवजन्म का समय बहुत ही दामी है, इसको सोच-समझ कर बिताना चाहिये ।

भगवत्प्राप्ति के जितने भी साधन है, उन सबमे उत्तम-से-उत्तम साधन है-भगवान को हर समय याद रखना । इसके समान और कोई साधन है ही नहीं । चाहे कोई उत्तम-से-उत्तम भी कर्म हो, पर वह भगवतस्मृति के समान नही है । चाहे भक्ति का मार्ग हो, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का । सभी मार्गोंमें भगवान की स्मृति की ही परम आवश्यकता है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!