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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -५-
गत ब्लॉग से आगे….. भगवान् से मन
हट जाय तो उस समय ऐसी तडपन होनी चाहिये, जैसे की
जल के बिना मछली तडपने लगती है ।
भगवान् के मिलने में देरी हो रही है । इसमें भगवान्
की त्रुटी नहीं है, हमारी ही कमी है । भगवान् में अनन्य
प्रेम होने से भगवान् प्रगट हो जाते है । अत: प्रभु की सदा वर्तमान अपार
अनन्त दया को समझकर क्षण-क्षण में मुग्ध होना चाहिये अथवा एकान्त में बैठकर भगवान्
की विरह-व्याकुलता में छटपटाकर भगवान् से स्तुति-प्रार्थना करनी चाहिये ।
भगवान् के नाम का जप, रूप का स्मरण और गुणों का मनन
करने से, सत्संग करने से तथा गद्-गद् होकर करुणाभाव से
भगवान् से स्तुति-प्रार्थना करने से भगवान् में प्रेम हो सकता है ।
संसाररुपी सागर में भगवान्
के चरण ही सुदृढ़ नौका है, उसे मजबूती से पकड़ लेना चाहिये । भगवान् के चरणों
में अपने-आपको सर्वतोभावेन समर्पण कर देना ही मजबूतीसे चरणरुपी नौका पकड़ना है ।
यह दृढ विश्वास करना चाहिये की भगवान् है, मिलते है, बहुतों को मिले है,
मुझे भी मिल सकते है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!