※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 19 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -५-

 

गत ब्लॉग से आगे….. भगवान्   से मन हट जाय तो उस समय ऐसी तडपन होनी चाहिये, जैसे की जल के बिना मछली तडपने लगती है ।

 

भगवान् के मिलने में देरी हो रही है । इसमें भगवान् की त्रुटी नहीं है, हमारी ही कमी है । भगवान् में अनन्य प्रेम होने से भगवान् प्रगट हो जाते है । अत: प्रभु की सदा वर्तमान अपार अनन्त दया को समझकर क्षण-क्षण में मुग्ध होना चाहिये अथवा एकान्त में बैठकर भगवान् की विरह-व्याकुलता में छटपटाकर भगवान् से स्तुति-प्रार्थना करनी चाहिये ।   
 

भगवान् के नाम का जप, रूप का स्मरण और गुणों का मनन करने से, सत्संग करने से तथा गद्-गद् होकर करुणाभाव से भगवान् से स्तुति-प्रार्थना करने से भगवान् में प्रेम हो सकता है ।

 
संसाररुपी सागर में भगवान् के चरण ही सुदृढ़ नौका है, उसे मजबूती से पकड़ लेना चाहिये । भगवान् के चरणों में अपने-आपको सर्वतोभावेन समर्पण कर देना ही मजबूतीसे चरणरुपी नौका पकड़ना है ।

 
यह दृढ विश्वास करना चाहिये की भगवान् है, मिलते है, बहुतों को मिले है, मुझे भी मिल सकते है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!