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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, चतुर्थी, सोमवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -६-
गत ब्लॉग से आगे….. श्रद्धा करने योग्य चार पदार्थ
है-भगवान्, महात्मा, शास्त्र, परलोक । किन्तु अनन्य प्रेम करने योग्य एक भगवान् ही
है ।
जप, ध्यान, पूजा तो परमेश्वर की ही करनी चाहिये ।
आज्ञापालन, भावों के अनुकूल बनना और आचरणों का अनुकरण करना-ये तीनों महात्माओं का
भी किया जा सकता है ।
महात्मा के दर्शन से ऐसा आनन्द होना चाहिये, जैसा की
परमेश्वर के दर्शन से हो । महात्माकी आज्ञा पालन में ऐसा उत्साह होना चाहिये, जैसा
की परमेश्वर की आज्ञा पालन में ।
भगवान् की प्राप्ति के लिये सबके साथ नि:स्वार्थ
प्रेम करे । स्वार्थ छोड़कर प्रेम करने वाले का दर्जा भगवान् के बराबर है; क्योकि
हेतुरहित प्रेम करने वाले या तो भगवान् है या उनका कोई प्रमी भक्त ।
स्वार्थ छोड़ कर दुसरे का हित करने से आत्मा शुद्ध हो
जाता है ।
कामदोष से जो बच जाता है, उसको मैं शूरवीर समझता हूँ ।
कामदोष से तंग आकर ही सूरदासजी ने अपनी आँखे फोड़ ली थी । इसलिए पुरुषों को
स्त्रियों की और देखना ही नही चाहिये । किसी समय आदत के कारण दीख जाय तो उसे पाप
समझकर उसके लिए पश्चाताप करना चाहिये और आगे के लिए दृष्टि न जाय-इसकी पूरी सावधानी
रखनी चाहिये एवं उस स्त्री को माता-बहिन के समान समझना चाहिये ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!