※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 20 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -६-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, चतुर्थी, सोमवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -६-

 

गत ब्लॉग से आगे….. श्रद्धा करने योग्य चार पदार्थ है-भगवान्, महात्मा, शास्त्र, परलोक । किन्तु अनन्य प्रेम करने योग्य एक भगवान् ही है ।

जप, ध्यान, पूजा तो परमेश्वर की ही करनी चाहिये । आज्ञापालन, भावों के अनुकूल बनना और आचरणों का अनुकरण करना-ये तीनों महात्माओं का भी किया जा सकता है ।  
 
महात्मा के दर्शन से ऐसा आनन्द होना चाहिये, जैसा की परमेश्वर के दर्शन से हो । महात्माकी आज्ञा पालन में ऐसा उत्साह होना चाहिये, जैसा की परमेश्वर की आज्ञा पालन में ।


भगवान् की प्राप्ति के लिये सबके साथ नि:स्वार्थ प्रेम करे । स्वार्थ छोड़कर प्रेम करने वाले का दर्जा भगवान् के बराबर है; क्योकि हेतुरहित प्रेम करने वाले या तो भगवान् है या उनका कोई प्रमी भक्त ।    


स्वार्थ छोड़ कर दुसरे का हित करने से आत्मा शुद्ध हो जाता है ।

 
कामदोष से जो बच जाता है, उसको मैं शूरवीर समझता हूँ । कामदोष से तंग आकर ही सूरदासजी ने अपनी आँखे फोड़ ली थी । इसलिए पुरुषों को स्त्रियों की और देखना ही नही चाहिये । किसी समय आदत के कारण दीख जाय तो उसे पाप समझकर उसके लिए पश्चाताप करना चाहिये और आगे के लिए दृष्टि न जाय-इसकी पूरी सावधानी रखनी चाहिये एवं उस स्त्री को माता-बहिन के समान समझना चाहिये ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!