※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -७-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -७-

 

गत ब्लॉग से आगे…..बहुत-से भाई अपने को भक्त मानते है, लेकिन जब तक भगवान् की मुहर (छाप) नहीं लग जाती, तब तक कोई भी भक्त नहीं हो सकता । भगवान् की मुहर क्या है ? भगवान् ने गीता के बारहवे अध्याय के १३वे श्लोक से १९वे तक जो भक्तों के लक्षण बतलाये  है, वहीं भगवान् की मुहर है ।

 
जैसे हरे रंग का चश्मा चढ़ा लेने से सारा संसार हरे रंग का दीखने लग जाता है, वैसे ही बुद्धि पर श्रीहरी का चश्मा चढ़ा लेना चाहिये । बुद्धि के ऊपर श्रीहरी का चश्मा चढ़ा लेने पर सारा संसार श्रीहरी के रूप में ही दीखाई देने लगता है ।

 
जहाँ हमारा मन जाय, जहाँ हमारी दृष्टि जाय, वहाँ भगवान् के स्वरुप का भाव करना चाहिये । यह समझना चाहिये की संसार में जो कुछ वस्तुमात्र है, वह भगवान् का रूप है और जो कुछ चेष्टामात्र (हलचल) है, वह भगवान् की लीला है अर्थात भगवान् ही अनेक रूप धारण करके भांति-भांति की लीला कर रहे है । ऐसा समझ कर हर समय भगवान् की लीला में मस्त रहे ।

 
एक बात बड़े महत्व की है । संसार का व्यर्थ चिन्तन सर्वथा हटा देना चाहिये । जहाँ-जहाँ मन जाय, वहाँ-वहाँ से हटा कर उसे भगवान् में मन लगाना चाहिये । एक भगवान् के सिवाय किसीका भी चिन्तन नही करना चाहिये । एक भगवान्-ही-भगवान् है-ऐसी वृत्ति बनानी चाहिये ।

 
आप एकान्त मैं बैठ कर जप-ध्यान करते है-उसमे आपका मन नहीं लगता, इसका कारण है-आप की बुरी आदत । आपको चाहिये की जहाँ मन जाय, वहाँ से जबरन उसे हटाकर परमात्मा में लगावे । इसी प्रकार की साधारण चाल से जो सैकड़ों वर्षों में लाभ होता है, वह उक्त प्रकार के जी-तोड़ परिश्रम करने पर बहुत ही थोड़े समय में ही हो सकता है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!