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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -७-
गत ब्लॉग से आगे…..बहुत-से भाई अपने को भक्त मानते
है, लेकिन जब तक भगवान् की मुहर (छाप) नहीं लग जाती, तब तक कोई भी भक्त नहीं हो
सकता । भगवान् की मुहर क्या है ? भगवान् ने गीता के बारहवे अध्याय के १३वे श्लोक
से १९वे तक जो भक्तों के लक्षण बतलाये है,
वहीं भगवान् की मुहर है ।
जैसे हरे रंग का चश्मा चढ़ा लेने से सारा संसार हरे
रंग का दीखने लग जाता है, वैसे ही बुद्धि पर श्रीहरी का चश्मा चढ़ा लेना चाहिये ।
बुद्धि के ऊपर श्रीहरी का चश्मा चढ़ा लेने पर सारा संसार श्रीहरी के रूप में ही
दीखाई देने लगता है ।
जहाँ हमारा मन जाय, जहाँ हमारी दृष्टि जाय, वहाँ
भगवान् के स्वरुप का भाव करना चाहिये । यह समझना चाहिये की संसार में जो कुछ
वस्तुमात्र है, वह भगवान् का रूप है और जो कुछ चेष्टामात्र (हलचल) है, वह भगवान्
की लीला है अर्थात भगवान् ही अनेक रूप धारण करके भांति-भांति की लीला कर रहे है ।
ऐसा समझ कर हर समय भगवान् की लीला में मस्त रहे ।
एक बात बड़े महत्व की है । संसार का व्यर्थ चिन्तन
सर्वथा हटा देना चाहिये । जहाँ-जहाँ मन जाय, वहाँ-वहाँ से हटा कर उसे भगवान् में
मन लगाना चाहिये । एक भगवान् के सिवाय किसीका भी चिन्तन नही करना चाहिये । एक
भगवान्-ही-भगवान् है-ऐसी वृत्ति बनानी चाहिये ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!