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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, षष्ठी, बुधवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -८-
गत ब्लॉग से आगे…..अभ्यास के साथ वैराग्य की बड़ी आवश्यकता है । वैराग्य होने से मन वश में हो सकता है । वैराग्य
होता है-वैराग्यवान पुरुषों के सँग करने से । जैसे चोर का सँग करने चोर के भाव हो
जाते है और व्यभिचारी के सँग से व्यभिचार के भाव आते है, उसी प्रकार विरक्त
पुरुषों का सँग करने से वैराग्य आपने-आप होने लगता है ।
भगवान् के भजन-ध्यान में मन न लगे, तब भी हठपूर्वक
भजन-ध्यान करते रहना चाहिये । आगे जाकर आप ही मन लग सकता है ।
भगवान् से यह प्रार्थना करनी चाहिये की प्रभो ! अपना
नित्य सुख थोडा सा भी दे दीजिये, किन्तु यह संसार का लम्बा-चौड़ा सुख भी किसी कामका नहीं ।
मनुष्य को अपने मन, बुद्धि और इन्द्रयों में भगवान् का
भजन-ध्यान करना चाहिये । जो मनुष्य भगवान् का भजन-ध्यान करता है, उसको स्वयं
भगवान् मदद देते है । इसलिए निराश नहीं होना चाहिये; बल्कि यह विश्वाश रखना चाहिये
की ईश्वर का हमारे सिर पर हाथ है, अत: हमारी विजय में कोई शंका नहीं; ईश्वर और
महात्मा की कृपा के बल पर ऐसा कोई काम नही, जो हम न कर सके । हमे बड़ा अच्छा मौका
मिला है । इसे पाकर अपना काम बना लेना चाहिये, निराश नही होना चाहिये ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!