※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 22 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -८-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, षष्ठी, बुधवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -८-

 
गत ब्लॉग से आगे…..अभ्यास के साथ वैराग्य की बड़ी आवश्यकता है ।  वैराग्य होने से मन वश में हो सकता है । वैराग्य होता है-वैराग्यवान पुरुषों के सँग करने से । जैसे चोर का सँग करने चोर के भाव हो जाते है और व्यभिचारी के सँग से व्यभिचार के भाव आते है, उसी प्रकार विरक्त पुरुषों का सँग करने से वैराग्य आपने-आप होने लगता है ।

 
वैराग्य ही आनन्द है, वैराग्य के समान त्रिलोकी का राज्य भी तुच्छ है । वैराग्य से भी अधिक आनन्द है उपरति में और उपरति से भी अधिक आनन्द है परमात्मा के ध्यान में । संसार में प्रीति न होना वैराग्य है और संसार की और वृति न होना उपरति है ।

 
भगवान् के भजन-ध्यान में मन न लगे, तब भी हठपूर्वक भजन-ध्यान करते रहना चाहिये । आगे जाकर आप ही मन लग सकता है ।

 
भगवान् से यह प्रार्थना करनी चाहिये की प्रभो ! अपना नित्य सुख थोडा सा भी दे दीजिये, किन्तु यह संसार का लम्बा-चौड़ा सुख भी किसी कामका नहीं ।

मनुष्य को अपने मन, बुद्धि और इन्द्रयों में भगवान् का भजन-ध्यान करना चाहिये । जो मनुष्य भगवान् का भजन-ध्यान करता है, उसको स्वयं भगवान् मदद देते है । इसलिए निराश नहीं होना चाहिये; बल्कि यह विश्वाश रखना चाहिये की ईश्वर का हमारे सिर पर हाथ है, अत: हमारी विजय में कोई शंका नहीं; ईश्वर और महात्मा की कृपा के बल पर ऐसा कोई काम नही, जो हम न कर सके । हमे बड़ा अच्छा मौका मिला है । इसे पाकर अपना काम बना लेना चाहिये, निराश नही होना चाहिये ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!