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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, सप्तमी, गुरूवार, वि० स० २०७०
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -९-
गत ब्लॉग से आगे….. मनुष्य संसार में लोग अपनी निन्दा
करें, अपमान करें तो उससे अपने को खुश होना चाहिये और यदि लोग अपनी प्रशंसा करे,
सम्मान करे तो उससे लज्जित होना चाहिये ।
कुसंग कभी न करे । मनुष्य सत्संग से तर जाता है और
कुसंग से डूबता है ।
सत्संग में सुनी हुई बातों को एकान्त में बैठकर मनन
करे और उनको काम में लाने की पूरी चेष्टा करे ।
पाप, भोग, आलस्य और प्रमाद-ये चार नरक में ले
जानेवाले है । इनका सर्वथा त्याग करे ।
यह निश्चय कर ले की प्राण भले ही चले जाँय पाप तो कभी
करना ही नहीं है । भारी-से-भारी आपति आ
जाय, तब भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिये और सदा ईश्वर को याद रखना चाहिये ।
मनुष्य जो चिंता, भय, शोक से व्याकुल होता है, इसमें
प्रारब्ध हेतु नहीं है । सिवा मूर्खता के इनके होने का कोई अन्य कारण नही है ।
मनुष्य थोडा-सा विचार करके इस मूर्खता को हटा दे तो से सरलता से मिट सकते है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!