※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -९-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, सप्तमी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 
आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -९-

 

गत ब्लॉग से आगे….. मनुष्य संसार में लोग अपनी निन्दा करें, अपमान करें तो उससे अपने को खुश होना चाहिये और यदि लोग अपनी प्रशंसा करे, सम्मान करे तो उससे लज्जित होना चाहिये ।

 

कुसंग कभी न करे । मनुष्य सत्संग से तर जाता है और कुसंग से डूबता है ।
 

सत्संग में सुनी हुई बातों को एकान्त में बैठकर मनन करे और उनको काम में लाने की पूरी चेष्टा करे ।

 
पाप, भोग, आलस्य और प्रमाद-ये चार नरक में ले जानेवाले है । इनका सर्वथा त्याग करे ।

 
यह निश्चय कर ले की प्राण भले ही चले जाँय पाप तो कभी करना ही नहीं है । भारी-से-भारी  आपति आ जाय, तब भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिये और सदा ईश्वर को याद रखना चाहिये ।

 

मनुष्य जो चिंता, भय, शोक से व्याकुल होता है, इसमें प्रारब्ध हेतु नहीं है । सिवा मूर्खता के इनके होने का कोई अन्य कारण नही है । मनुष्य थोडा-सा विचार करके इस मूर्खता को हटा दे तो से सरलता से मिट सकते है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!