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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, नवमी, शनिवार, वि० स० २०७०
सत्संग और कुसंग -१-
महापुरुषों की महिमा और उनके सँग का फल
जिस प्रकार भगवान् के महान आदर्श चरित्र और गुणों की
महिमा अनिवर्चनीय है, उसी प्रकार भगवतप्राप्त सन्त महापुरुषों के पवित्रतम चरित्र और
गुणों की महिमा का भी कोई वर्णन नहीं कर
सकता । ऐसे महापुरुषों में समता, शान्ति, ज्ञान, स्वार्थत्याग और सौहार्द आदि
पवित्र गुण अतिशयरूप में होते है, इसी से ऐसे पुरुषों के सँग की महिमा शास्त्रों
में गायी गयी है ।
श्री तुलसीदासजी महाराज कहते है-
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरीअ तुला एक अंग ।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग ।।
ठीक यही भाव श्रीमद्भागवतम के इस श्लोक में है-
श्लोक संख्या (१|१८|१३) ‘भगवतसंगी अर्थात नित्य
भगवान् के साथ रहने वाले अनन्य प्रेमी भक्तों के निमेषमात्र के भी सँग के साथ हम
स्वर्ग और मोक्ष की भी समानता नही कर सकते,
फिर मनुष्य के इच्छित पदार्थों की तो बात ही क्या है ?’
भगवतप्रेमी महापुरुषों के एक निमेष के सत्संग के साथ
स्वर्ग-मोक्ष किसी की भी तुलना नहीं होती-यह बात उन्ही लोगों की समझ में आ सकती
है, जो श्रद्धा तथा प्रेम के साथ नित्य सत्संग करते है ।
प्रथम तो संसार में ऐसे महापुरुष है बहुत कम । फिर
उनका मिलना दुर्लभ है और मिल जाय तो पहचानना अत्यन्त दुर्लभ है । तथापि यदि ऐसे
महापुरुषों का किसी प्रकार मिलना हो जाय तो उससे अपने-अपने भाव के अनुसार लाभ
अवश्य होता है; क्योकि उनका मिलना अमोघ है
। ......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!