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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०
सत्संग और कुसंग -३-
गत ब्लॉग से
आगे….. इस
प्रकार जिन को अग्नि का ज्ञान भी नही था, उन्होंने भी अग्निके स्वभाववश उसके निकट
रहने के कारण गरमी प्राप्त की, जिन्हें ज्ञान था पर श्रद्धा नहीं थी, उन लोगों ने
केवल रोशनी-रसोई का लाभ उठाया । ज्ञान-श्रद्धा के साथ सकामभाव से अग्निहोत्र
करनेवाले ने सकाम सिद्धि पाई और निष्कामी पुरुष ने परमात्मविषयक लाभ उठाया ।
इसी प्रकार किसी महापुरुष का यदि संग हो जाय और
उन्हें पहचाना भी न जाय तो भी उसके स्वाभाविक तेज से पापरुपी ठंड का तो नाश होता
ही है, जो लोग महात्मा को किसी किसी अंश में ही जानते है और उनसे साधारण क्षणिक
लाभ उठाते है, उन्हें साधारण क्षणिक लाभ मिल जाता है ।
जिनमे श्रद्धा है पर साथ ही
सकाम भाव है, वे उनका सँग करके इस लोक और परलोक के भोगों की प्रप्तिरूप वैषयिक लाभ
प्राप्त करते है और जो लोग उन्हें भलीभांति पहचानकर श्रद्धा के साथ निष्काम भाव से
उनका सँग करते है, वे परमात्मप्राप्ति विषयक लाभ उठाते है ।
इस प्रकार महात्मा के
अमोघ सँग से लाभ सभी को होता है, पर होता है अपनी अपनी भावना के अनुसार ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!