※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 27 जनवरी 2014

सत्संग और कुसंग -३-


 ।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और कुसंग  -३-

 
गत ब्लॉग से आगे….. इस प्रकार जिन को अग्नि का ज्ञान भी नही था, उन्होंने भी अग्निके स्वभाववश उसके निकट रहने के कारण गरमी प्राप्त की, जिन्हें ज्ञान था पर श्रद्धा नहीं थी, उन लोगों ने केवल रोशनी-रसोई का लाभ उठाया । ज्ञान-श्रद्धा के साथ सकामभाव से अग्निहोत्र करनेवाले ने सकाम सिद्धि पाई और निष्कामी पुरुष ने परमात्मविषयक लाभ उठाया ।

इसी प्रकार किसी महापुरुष का यदि संग हो जाय और उन्हें पहचाना भी न जाय तो भी उसके स्वाभाविक तेज से पापरुपी ठंड का तो नाश होता ही है, जो लोग महात्मा को किसी किसी अंश में ही जानते है और उनसे साधारण क्षणिक लाभ उठाते है, उन्हें साधारण क्षणिक लाभ मिल जाता है ।
 
जिनमे श्रद्धा है पर साथ ही सकाम भाव है, वे उनका सँग करके इस लोक और परलोक के भोगों की प्रप्तिरूप वैषयिक लाभ प्राप्त करते है और जो लोग उन्हें भलीभांति पहचानकर श्रद्धा के साथ निष्काम भाव से उनका सँग करते है, वे परमात्मप्राप्ति विषयक लाभ उठाते है ।
 
इस प्रकार महात्मा के अमोघ सँग से लाभ सभी को होता है, पर होता है अपनी अपनी भावना के अनुसार ।......शेष अगले ब्लॉग में  

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!