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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ कृष्ण, अमावस्या, गुरुवार, वि० स० २०७०
सत्संग और कुसंग -६-
विशेष और शीघ्र लाभ तो वे साधक प्राप्त कर सकते है,
जो ईश्वर और महापुरुषों की इच्छा का अनुसरण, आचरणों का अनुकरण और आज्ञा का पालन
करते है । जो भाग्यवान पुरुष महापुरुषों की आज्ञा की प्रतीक्षा न करके सारे कार्य
उनकी रूचि और भावों के अनुकूल करते है, उन पर भगवान् की विशेष कृपा माननी चाहिये ।
यों तो श्रेष्ठ पुरुषों का अनुकरण साधारण लोग ही किया करते है । इसीलिये
श्रीभगवान् ने भी कहा है-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ (गीता ३/२१)
‘श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा
ही आचरण करते है । वह जो कुछ प्रमाण कर देता है,
समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है ।’
पर जो श्रद्धा-विश्वासपुर्वक महापुरुषों के चरित्र का
अनुकरण और उसके द्वारा निर्णीत मार्ग का अनुसरण करते है, वे विशेष लाभ प्राप्त
करते है ।
इसी प्रकार भगवान् और महात्माओं के चरित्र, उपदेश,
ज्ञान, महत्व तत्व, रहस्य आदि की बातें जिन ग्रन्थों में लिखित हैं, महात्माओं के
और भगवान् के चित्र जिन दीवालों तथा कागजों पर अंकित है; यहाँ तक की महात्माओं की
और भगवान् की स्मृति दिलानेवाली जो-जो वस्तुएँ है-उन सबका सँग भी सत्संग ही है तथा
श्रद्धा-विश्वास के अनुसार सभी को लाभ पहुचाने वाला है ।
जिस प्रकार स्वाभाविक ही मध्ह्यानकाल के सूर्य से
प्रखर प्रकाश, पूर्णिमा के चन्द्रमा की ज्योत्स्ना से अमृत एवं अग्नि से उष्णता
प्राप्त होती हैं, उसी प्रकार महात्मा पुरुष के सँग से स्वाभाविक ही ज्ञान का
प्रकाश, शान्ति की सुधाधारा एवं साधन में तीक्ष्णता और उतेजना प्राप्त होती है ।
इसलिये सभी को चाहिये की अपनी इन्द्रियों को, मन को,
बुद्धि को नित्य-निरन्तर महापुरुषों के सँग में और उन्ही विषयों में लगाये जो
भगवान् तथा महापुरुषों के संसर्ग या सम्बन्ध से भगवद्भाव-सम्पन्न हो चुके है । ऐसा करने पर उन्हें सर्वत्र तथा सर्वदा सत्संग ही
मिलता रहेगा ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!