※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

सत्संग और कुसंग -७-


 ।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, प्रतिपदा, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और कुसंग  -७-
 


 गत ब्लॉग से आगे…..  उपर्युक्त विवेचन श्रीभगवान् और सच्चे अधिकारी महापुरुषों के सम्बन्ध में है ऐसे महापुरुष कोई विरले ही होते है इस सिद्धान्त का दुरूपयोग करके जो दुराचारी लोग शास्त्रों तथा भगवान् का खण्डन करते हुए दम्भपूर्वक स्वयं अपने को भगवान् या महापुरुष बतलाकर अपने कल्पित मिथ्या नाम का जप-कीर्तन करवाते है, अपने नश्वर शरीर को पुजवाते, लोगो को अपना उचिष्ट, अपने चरणों की धूलि और चरणामृत देते, अपने चित्र का ध्यान करवाते और इस प्रकार जनता को धोखा देकर स्वार्थ-साधन करते है, वे वस्तुत: बड़ा पाप करते है ऐसी लोगों को महापुरुष मानना बड़े-से-बड़े धोखे में पडना है तथा ऐसे लोगों का सँग करना बड़े-से-बड़ा कुसंग है

असल में यह एक सिद्धान्त है की जिस प्रकार के भाववाले पुरुष का संसर्ग जिस मात्रा में चेतनाचेतन पदार्थों को प्राप्त होता है, उसी प्रकार के भावों का उसी मात्रा में न्यूनाधिकरूप से उनमे प्रवेश होता है और यह प्रवेश जैसे महात्माओं के भावों का होता है वैसे ही दुरात्माओं के भावों का भी होता है महात्माओं का भाव जैसे सच्चे श्रद्धालु व्यक्तियों पर तथा सात्विक पदार्थों पर विशेष प्रभाव पडता है, वैसे ही दुराचारियों के भावों का दुराचारपरायण व्यक्तियों एवं राजस-तामस पदार्थों पर विशेष प्रभाव पडता है इसीलिये अब यहाँ कुसंग के फल संक्षेप में विचार किया जाता है     ......शेष अगले ब्लॉग में  

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!