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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, द्वितीया, शनिवार, वि० स० २०७०
सत्संग और कुसंग -८-
दुराचारी पुरुष और
दुराचारियों के कुसंग का फल
गत ब्लॉग से
आगे….. जिस प्रकार सत्संग से बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता
है, उसी प्रकार कुसंग से बुरा प्रभाव पड़ता है । भगवद्भाव से रहित नास्तिक, विषयी, पामर, आलसी,
प्रमादी और दुराचारी व्यक्तियों का सँग तो प्रत्यक्ष हानिकारक और पतन करनेवाला है
ही; इनके संसर्ग में आये हुए मनुष्य, पशु-पक्षी और जड पदार्थों का संसर्ग हानिकारक
है । जो लोग गंदे नाटक-सिनेमा देखते
है, रेडिओ के श्रृंगारपरक गंदेगाने और वार्तालाप सुनते है, घरों में ग्रामोंफोनादी
पर गंदे रेकॉर्ड चढ़ाकर सुनते-सुनाते है, व्यभिचारियों और अनाचारियों के मोहल्ले
में रहते है और उन लोगों के संसर्ग में आये हुए पदार्थों का सेवन करते है, उन पर
भी बुरा असर होता है एवं जो लोग मोह या स्वार्थवश ऐसे लोगों का सेवन, सँग या
अनुकरण करते है, उनका तो इच्छा न होने पर भी-शीघ्र पतन हो जाता है ।
सँग का रंग चढ़े बिना नही रहता । एक आदमी जुआ खेलना बुरा समझता है, चोरी-डकैती को पाप
मानता है, शराब से दूर रहना चाहता है, अनाचार-व्यभिचार की बात भी नही सुनना चाहता,
वह भी यदि ऐसे लोगों के गिरोह में किसी कारण से सम्मिलित होने लगता है और यदि ऐसे
लोगों के गिरोह में किसी भी कारणसे सम्मिलित होने लगता है और यदि उसे अनिष्टकर
मानकरशीघ्र ही छोड़ नहीं देता तो कुछ ही समय में उस सँगदोष के कारण पहले उन
कुकर्मों में उनकी घृणा कम होती है; फिर घृणा का नाश होता है, तदन्तर उनमे प्रवृति
होने लगती है और अन्त में प्राय: वैसा ही बन जाता है । इसके अनेकों उदाहरण हमारे सामने है । ......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!