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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०
सत्संग और कुसंग -९-
आज भी विशेषज्ञ डाक्टर आदि किसी
भी संक्रामक रोग से पीड़ित रोगी को छूकर हाथ धोते है तथा किसी अंश में इस सिद्धान्त
को स्वीकार करते है । यह वैज्ञानिक तत्व है । हमारे परम विज्ञ ऋषि-मुनि दीर्घदृष्टि और
सूक्ष्मदृष्टि से सम्पन्न थे । प्रत्येक वस्तु के परिणाम को जानते थे, इसी से
उन्होंने स्पर्शास्पर्श की विधि का निर्दोष निर्माण किया था । यह केवल सँग दोष से बचने के लिए था, न की किसी जाति
या व्यक्तिविशेष से घृणा करने के लिए ।
दुराचारी नर-नारियों का सँग का तो बुरा असर होता ही
है, पशु-पक्षियों की अश्लील क्रिया, चित्रलिखे अश्लील दृश्य, समाचारपत्रों में प्रकाशित
नारियों आदि के चित्र, किसी के अश्लील और घ्रणित वर्ताव और क्रियाओं का वर्णन
देखने-सुनने और पढने से भी चित में अश्लील और असद्भावों की जागृति हो जाती है । इस तत्व को समझकर मनुष्यों को सब प्रकार से कुसंग का
सर्वथा त्याग करना चाहिये । श्रीरामचरितमानस में कहा है-
बरु भल बास नरक कर ताता । दुष्ट संग जनि देई विधाता ।।
नरक रहकर वहां की यंत्रणा भोगना अच्छा पर विधाता कहीं
बुरा सँग न दे । क्षणभर का भी बुरा संग गिराने
वाला होता है ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!