※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

सत्संग और कुसंग -९-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और कुसंग  -९-

 
 गत ब्लॉग से आगे….. कामी के सँग से काम का, क्रोधी के सँग से क्रोध का और लोभी के सँग से लोभ का प्रगट होना, बढ़ना और तदनुसार क्रिया करवा देना स्वाभाविक होता है काम-क्रोध-लोभ जिसमे उत्पन्न होकर बढ़ जाते है, उसका पतन अवश्यम्भावी है भगवान् ने इनको नरक का द्वार और आत्मा का पतन करने वाला बताया है (गीता १६/२१) सँगदोष से चरित्र बिगड़ जाता है, खान-पान भ्रष्ट हो जाता है और मन में तथा आचरणों में नाना प्रकार के दोष आकर दृढता के साथ अपना डेरा जमा लेते है इसलिए शास्त्रों में अमुक-अमुक स्थितियों के तथा अमुक-अमुक कार्यों करने वाले  लोगों के संसर्ग से बचने की आज्ञा दी है, यहाँ तक की उन्हें स्पर्श करने का भी निषेध किया है इसमें प्रसूति का और रजस्वलावस्था में पूजनीय माता, प्रियतमा पत्नी तथा अपने ही शरीर से उत्पन्न पुत्री तक के स्पर्श का निषेध किया है
 
आज भी विशेषज्ञ डाक्टर आदि किसी भी संक्रामक रोग से पीड़ित रोगी को छूकर हाथ धोते है तथा किसी अंश में इस सिद्धान्त को स्वीकार करते है यह वैज्ञानिक तत्व है हमारे परम विज्ञ ऋषि-मुनि दीर्घदृष्टि और सूक्ष्मदृष्टि  से सम्पन्न थे प्रत्येक वस्तु के परिणाम को जानते थे, इसी से उन्होंने स्पर्शास्पर्श की विधि का निर्दोष निर्माण किया था यह केवल सँग दोष से बचने के लिए था, न की किसी जाति या व्यक्तिविशेष से घृणा करने के लिए

दुराचारी नर-नारियों का सँग का तो बुरा असर होता ही है, पशु-पक्षियों की अश्लील क्रिया, चित्रलिखे अश्लील दृश्य, समाचारपत्रों में प्रकाशित नारियों आदि के चित्र, किसी के अश्लील और घ्रणित वर्ताव और क्रियाओं का वर्णन देखने-सुनने और पढने से भी चित में अश्लील और असद्भावों की जागृति हो जाती है इस तत्व को समझकर मनुष्यों को सब प्रकार से कुसंग का सर्वथा त्याग करना चाहिये श्रीरामचरितमानस में कहा है-

बरु भल बास नरक कर ताता दुष्ट संग जनि देई विधाता ।।

नरक रहकर वहां की यंत्रणा भोगना अच्छा पर विधाता कहीं बुरा सँग न दे क्षणभर का भी बुरा संग गिराने वाला होता है

                    
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!