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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७०
सत्संग और महात्माओं का
प्रभाव -७ –
गत ब्लॉग से आगे…..
महापुरुषों के लक्षण बड़े ही उच्चकोटि के बताये गए है । जैसे भगवान् बिना ही कारण सब पर दया और प्रेम करते
है, इसी प्रकार महापुरुष भी अहेतुक कृपा तथा प्रेम किया करते है । जैसे भगवान् में क्षमा, दया, शान्ति, संतोष, समता,
सरलता, ज्ञान, वैराग्य आदि अनन्त गुण सहज होते है, वैसे ही महात्मा में भी होते है
।
जो ज्ञान के द्वारा ब्रह्म को
प्राप्त होता है तथा ब्रह्म ही बन जाता है, वह तो परमात्मा से कोई अलग पदार्थ ही
नही रह जाता । परमात्मा जो दिव्य स्वरुप, प्रभाव
और गुण है, वही महात्मा का ‘महात्मापन’ है । महात्मा का शरीर तो महात्मा है नही और उसमे जो आत्मा
है, वः परमात्मा को प्राप्त हो जाता है, परमात्मा से भिन्न रहता नही । अत: परमात्मा का जो दिव्य स्वरुप, प्रभाव और गुण है,
वही ‘महात्मापन’ है ।
जो प्रेमी भक्त भक्ति के द्वारा भगवान् को प्राप्त हो
जाता है, उस भक्त में भी भगवान् के वे गुण आ जाते है, जिनकी व्याख्या गीता के
बारहवे अध्याय में तेरहवे से उन्नीसवे
श्लोक तक की गयी है । ज्ञान के द्वारा जो परमात्मा को
प्राप्त हो गया है, जो ब्रह्म ही बन गया है, उनके लक्षण गीता के चौदहवे अध्याय में
बाईसवे से पच्चीसवे श्लोक तक बताये गए है ।.... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!