※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -८ –


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, त्रयोदशी, बुधवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -८ – 

गत ब्लॉग से आगे…..  उच्चकोटि के अधिकारी महात्मा पुरुषों के तो दर्शन मात्र से भी बहुत लाभ होता है; क्योकि उससे महात्मा का स्वरुप हृदय में अंकित हो जाता है, जिससे हृदय के पाप नष्ट हो जाते है महात्मा पुरुष दिव्य ज्ञान की एक विलक्षण ज्योति है, वह  दिव्य ज्ञानज्योति समस्त पापों को भस्म कर देती है महात्मा यदि किसी को स्मरण कर ले तो उसके मन में उसकी स्मृति हो जाने से भी पाप नष्ट हो जाते है
 
 इसी प्रकार महात्मा का स्पर्श प्राप्त हो जाने पर भी पाप नष्ट हो जाते है; चाहे महात्मा किसी को स्पर्श करे, चाहे महात्मा को कोई स्पर्श कर ले जैसे एक और अग्नि पड़ी हुई है और दूसरी और एक घास की ढेरी है अग्नि की चिंगारी उड़कर घास पर गिरती है तो घास जलकर अग्नि बन जाता है और घास उड़कर अग्नि में गिरती है तो भी घास अग्नि बन जाता है, अग्नि अग्नि ही रहती है
 
वैसे ही अग्नि की भांति महात्माओं में सदा ज्ञानाग्नि प्रजव्लित रहती है उस ज्ञानाग्निके द्वारा महात्मा पुरुषों के तो पाप पहले ही नष्ट हो चुके है, किन्तु जिनका उनका साथ किसी भी प्रकार का संसर्ग हो जाता है, उसके भी पाप नष्ट होते चले जाते है फिर जो महात्माओं के साथ वार्तालाप करके उनके बताये हुए सिद्धांतों के अनुसार साधन करता है, उसका संसार-सागर से उद्धार हो जाय तो इसमें कहना ही क्या है ! .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!