※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -६–


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०

 
 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -६–
 

गत ब्लॉग से आगे…..यदि पहचान हो जाती है और महात्मा के अलौकिक प्रभाव का ज्ञान हो जाता है, तब तो वह, जैसा उसका ज्ञान होता है, उसके अनुसार लाभ उठा लेता है जैसे अग्नि का अर्थी पुरुष दोनों प्रकार के लाभ उठा लेता है-विदाहिका से भोजन बनाने की और प्रकाशिका से अंधकार का नाश करके प्रकाश प्राप्त करने का; वैसे ही महात्मा जो ‘सद्गुण’ और ‘उत्तम आचरण’-ये दो वस्तुए स्वाभाविक ही है, उन दोनों का ज्ञान होने पर मनुष्य विशेष लाभ उठा सकता है

महात्मा को जान लेने से यदि महात्मा में श्रद्धा हो जाती है तथा महात्मा के इस प्रभाव का भी ज्ञान हो जाता है की महात्मा जो चाहे सो कर सकते है, तो संसार में, जो अल्पबुद्धि सकामी पुरुष है, वह महात्मा के द्वारा अपनी लौकिक इच्छाकी, संसारिक  कामनाओं की पूर्ती कर लेता है अवश्य ही यह बहुत नीची चीज है, महात्मा पुरुषों से संसार की चीजे मांगना और संसारिक भोगेच्छा की पूर्ति कराने की इच्छा करना वस्तुत: महात्मा के वास्तविक प्रभाव तथा तत्व को न समझना और उसका दुरूपयोग करना ही है किन्तु जो महात्मा को और उनके असली गुण-प्रभाव को श्रद्धापूर्वक तत्वत: समझ जाता है, वह तो स्वयं महात्मा ही बन जाता है, यही यथार्थ लाभ है .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!