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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, दशमी, रविवार, वि० स० २०७०
सत्संग और महात्माओं का
प्रभाव -५ –
गत ब्लॉग से आगे….. अग्नि में प्रकाशिका और
विदाहिका-ये दो शक्तियाँ स्वाभाविक ही है । अग्नि का ज्ञान होने पर ही मनुष्य उसकी दोनों
शक्तिओं से लाभ उठा सकता है और यदि अग्नि में यह भाव हो जाता है की अग्नि साक्षात्
देवता है, तब तो वह उसमे पुत्र, धन, आरोग्य, कीर्ति आदि किसी भी कामना की पूर्ति
के लिए श्रद्धा तथा विधिपूर्वक हवंन करता है तो वह अपने मनोरथ के अनुसार लाभ उठा
लेता है और यदि श्रद्धा-पूर्वक निष्कामभाव से, शास्त्रोक्त विधि से हवंन करता है
तो वह पुरुष मुक्ति को भी प्राप्त कर लेता है । निष्कामभाव पूर्वक यज्ञ करने से अन्तकरण की शुद्धि
होने से स्वाभाविक ही परमात्मा के तत्व का ज्ञान हो जाता है तथा तत्वज्ञान से वह
जीवनमुक्त हो जाता है ।
इसी प्रकार किसी को महात्मा पुरुष मिलते है तो उसका
ज्ञान न रहने पर भी सामान्यभाव से तो लाभ होता ही है । जैसे ढकी हुई अग्नि के द्वारा-गरमी के द्वारा-शीत का
निवारण हो जाता है, वैसे ही महात्माओं के मिलने पर उनके गुणों के स्वाभाविक प्रभाव
से वातावरण की शुद्धि होने के कारण पाप-भावना का अभाव और उनके गुणों का आभास तो आ
ही जाता है । महात्माओं के उत्तम गुण, उत्तम आचरण और उत्तम भाव
होते है; उनका ज्ञान भी उच्च कोटि का होता
है ।
उनके सँग से ये सब चीजे किसी-न-किसी अंश में बिना जाने-पहचाने भी आ ही जाती
है ।.... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!